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?सूक्ष्मचर्चा - अमृत माँ जिनवाणी से - २८५


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २८५   ?


                    "सूक्ष्मचर्चा"


             एक दिन महराज ने कहा, "कोई कोई मुनिराज कमण्डलु की टोटी को सामने मुँह करके गमन करते हैं, यह अयोग्य है।।"

             मैंने पूंछा, "महराज ! इसका क्या कारण है, टोंटी आगे हो या पीछे हो। इसका क्या रहस्य है?"

              महराज ने कहा, "जब संघ में कोई साधु का मरण हो जाता है, तब मुनि टोंटी आगे करके चलते हैं, उससे संघ के साधु के मरण का बोध हो जाएगा। वह अनिष्ट घटना का संकेत है।"

           मैंने पूंछा महराज, "यदि सामने करके चला जाए, तो और भी कोई दोष नहीं आता है?

          महराज ने कहा, "टोंटी सामने करके चलने से छोटे कीड़े टोंटी के छिद्र द्वारा भीतर घुस जावेंगे और भीतर के पानी में उनका मरण हो जायेगा। टोंटी पीछे करके चलने में यह बात नहीं है।"

           इस उत्तर को सुनकर, आचार्य महराज की सूक्ष्म विचार पध्दति और तार्किक दृष्टि का पता चला कि वे कितनी बारीकी से वस्तु के स्वरूप के बारे में विचार करते हैं। उनका ऐसा समाधान होता था कि उससे अंतःकरण को पूर्ण संतोष प्राप्त होता था।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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