?पाप त्याग द्वारा ही जीव का उद्धार होता है - अमृत माँ जिनवाणी से - २७७
? अमृत माँ जिनवाणी - २७७ ?
"पाप त्याग द्वारा ही जीव का उद्धार होता है"
कल हमने देखा की पूज्य शान्तिसागरजी महराज ने अनेकों अजैन भाइयों को मद्य, मांस तथा मदिरा का त्याग कराकर उनका उद्धार किया।
इसी संबंध में वर्धा में सन १९४८ के मार्च माह में मैं वर्तमान राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्रप्रसाद जी से मिला था, लगभग डेढ़ घंटे चर्चा हुई थी। उस समय हरिजन सेवक पत्र के संपादक श्री किशोर भाई मश्रुवाला भी उपस्थित थे। श्री विनोवा भावे से भी मिलना हुआ था।
मैने कहा था कि गरीबों के हितार्थ कम से कम धर्म के नाम पर किया जाने वाला पशुओं का बलिदान बंद करने के विषय में प्रचार कार्य होना चाहिए। सर्वोदय समाज को भी इसमें क्रियात्मक सहयोग देना चाहिए, किन्तु यह मंगल योजना कार्यान्वित करने में उन्होंने अपने को असमर्थ बताया।
यही चर्चा सन १९४९ में मुम्बई के गृहमंत्री श्री मोरारजी देसाई से चलाई थी, तब उन्होंने कहा था कि सरकार की बात जनता सुनती नहीं है। मौलिक सुधारों के स्थान में पत्तों के सीचने द्वारा वृक्षों को लहलहाता, हराभरा देखने की लालसा आजकल के लोक-सेवकों के मन में स्थान कर गई है। क्या पत्र सिंचन भी कभी इष्ट साधक हुआ है?
सच्चे लोक कल्याण की आकांक्षा करने वालों को आचार्य महराज से प्रकाश प्राप्त करना चाहिए था, किन्तु उनकी दृष्टि में इतनी महान आत्मा नहीं दिखाई पड़ती है। मोहान्धकार वश ऐसा ही परिणमन होता है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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