?अगणित ग्रामीणों का व्रतदान द्वारा उद्धार - अमृत माँ जिनवाणी से - २७६
? अमृत माँ जिनवाणी से - २७६ ?
"अगणित ग्रामीणों का व्रतदान द्वारा उद्धार"
छत्तीसगढ़ प्रांत के भयंकर जंगल के मध्य से संघ का प्रस्थान हुआ। दूर-२ के ग्रामीण लोग इन महान मुनिराज के दर्शनार्थ आते थे। महराज ने हजारों को मांस, मद्य आदि का त्याग कराकर उन जीवों का सच्चा उद्धार किया था। पाप त्याग द्वारा ही जीव का उद्धार होता है। पाप प्रवृत्तियों के परित्याग से आत्मा का उद्धार होता है।
कुछ लोग सुंदर वेशभूषा सहभोजनादि को आत्मा के उत्कर्ष का अंग सोचते हैं, यह योग्य बात नहीं है। आत्मा के उत्कर्ष के लिए अंतःकरण वृत्ति का परिमार्जन किया जाना आवश्यक है।
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज का कथन यही है कि गरीबों का सच्चा उद्धार तब होगा, जब उनकी रोटी की व्यवस्था करते हुए उनकी आत्मा को मांसाहारादि पापों से उन्मुक्त करोगे।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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