?निवासकाल - अमृत माँ जिनवाणी से - ३२२
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३२२ ?
"निवासकाल"
नीरा में जैनमित्र के संपादक श्री मूलचंद कापड़िया ने "दिगम्बर जैन" का 'त्याग' विशेषांक पूज्यश्री को समर्पित किया। उस समय आचार्य महराज पूना के समीपस्थ नीरा स्टेशन के पास दूर एक कुटी में विराजमान थे।
कुछ समय के बाद पूज्यश्री का आहार हुआ। पश्चात आचार्य महराज सामायिक को जा रहे थे। संपादकजी तथा संवाददाता महाशय महराज की सेवा में आये। कापढ़िया ने पूंछा- "महराज आप अभी यहाँ कब तक हैं?"
महराज ने कहा- "हमें नहीं मालूम। सामायिक तक तो यहाँ ही हैं। आगे का क्या निश्चित ?"
जैनमित्र संपादक ने कहा- "महराज ! हमे अभी रेल से जाना है।"
महराज ने कहा- "तुमको इतनी जल्दी क्या है?"
उन्होंने कहा- "महराज अभी फुरसत नहीं है।"
महराज ने पूंछा- "फुरसत कब मिलेगी कापडिया ! तुम इतने वृध्द हो गए। अब कब फुरसत मिलेगी?
इस प्रश्न का उत्तर वे या हम सभी क्या देंगे? परिग्रह की आराधना में निमग्न सारे संसार के समक्ष आचार्य देव का यह महान प्रश्न है- "अब कब फुरसत मिलेगी?"
महराज ने बताया था- "एक व्यक्ति ने हमें आहार दिया। हम सामायिक को बैठ गए। सामायिक पूर्ण होने पर हमें यह खबर दी गई कि आपको आहार देने वाले उन व्यक्ति का प्राणांत हो गया।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
?आज की तिथी - वैशाख शुक्ल ११?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.