?मृत्यु की पूर्व सूचना - अमृत माँ जिनवाणी से - २३८
? अमृत माँ जिनवाणी से - २३८ ?
"मृत्यु की पूर्व सूचना"
पूज्य शान्तिसागरजी महराज के योग्य शिष्य मुनिश्री पायसागरजी महराज के वृतांत चल रहा था। उसी क्रम में आगे-
पायसागर महराज कहते थे- "मेरा समय अब अति समीप है। मै कब चला जाऊँगा, यह तुम लोगों को पता भी नहीं चलेगा।"
हुआ भी ऐसा ही। प्रभातकाल में वे आध्यात्मप्रेमी साधुराज ध्यान करने बैठे। ध्यान में वे मग्न थे। करीब ७.३० बजे लोगों ने देखा, तो ज्ञात हुआ कि महान ज्ञानी, आध्यात्मिक योगीश्वर पायसागर महराज इस क्षेत्र से चले गए। पंक्षी पिजरा छोड़ कर चला गया। वास्तव में उन्होंने लोहतुल्य जीवन को स्वर्णरुपता प्रदान कर दिव्य पद प्राप्त किया।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
?आज की तिथी - पौष शुक्ल षष्ठी?
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जय जिनेन्द्र बंधुओं,
धन्य हैं ऐसे मुनिराज और धन्य हैं ऐसे जीव जिन्होंने जीवन भर घोर तपश्चरण किया और भली भाँति संयम साधना करते हुए कुछ ही क्षणों में अपनी नश्वर देह को त्याग कर अपनी मोक्ष यात्रा में आगे बढ़े।
सचमुच अद्भुत है पूज्य मुनिश्री पायसागरजी महराज का जीवन चरित्र। पायसागरजी महराज की भाँति अन्य मुनिराजों का भी जीवन चरित्र है जो ऐसी अवस्था से संयम मार्ग में आगे बढ़े जिसमें सामान्यतः हम सभी कल्पना भी नहीं करते है, यह सब चारित्र चक्रवर्ती पूज्य शान्तिसागरजी महराज के दिव्यजीवन का ही प्रभाव था।
??पू.शान्तिसागरजी महराज की जय??
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