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मुनिश्री पायसागर जी का अद्भुत जीवन -१ - अमृत माँ जिनवाणी से - २३१


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २३१   ?


मुनि पायसागरजी का अद्भुत जीवनचरित्र-१


         कल हमने पूज्य शांतिसागरजी महराज के शिष्य पूज्य मुनि श्री पायसागरजी महराज के अद्भुत जीवन चरित्र को देखना प्रारंभ किया था। उसी में आगे-

            गंगा में गहरे गोते लगाए। काशी विश्वनाथ गंगे के सानिध्य में समय व्यतीत करता हुआ हर प्रकार के साधुओं के संपर्क में आया। मैं लौकिक कार्यों में दक्ष था। इसलिए साधु बनने पर भी मेरी विचार शक्ति मृत नहीं हुई थी। वह मूर्छित अवश्य थी।

           जब मै जटा विभूषित सन्यासी के रूप में फिरता-२ सोलापूर के समीप आया तब मेरी दृष्टि में बात आई की पाखंडी साधु के रूप में फिरकर आत्मवंचना तथा परप्रताड़ना के कार्य में लगे रहना महामूर्खता है।

           मैंने भिन्न भिन्न सम्प्रदायों के शास्त्रों का परिशीलन किया था, उस शास्त्र ज्ञान ने मुझे साहस प्रदान किया कि मैं उस साधुत्व के ढकोसले को दूर फेक दूँ।

           अब मैंने अपने विचार अपने जीवन का नया अध्याय शुरू किया। मै सुंदर वस्त्र आदि से सुसज्जित गुंडे के रूप में यत्र-तत्र विचरण करने लगा। शायद ही ऐसा कोई दोष हो, जो खोजने पर मुझमें न मिले। मैं अत्यंत विषयांध व्यक्ति बन गया।

क्रमशः.........

? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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