?मुनिश्री पायसागर जी का अद्भुत जीवन - अमृत माँ जिनवाणी से - २३०
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जय जिनेन्द्र बंधुओं,
प्रस्तुत प्रसंग तीन या चार चरणों में पूर्ण होगा, इन प्रसंगों को अवश्य ही पढ़ें। इन प्रसंगों को पढ़कर आपको पूज्य शान्तिसागरजी महराज के श्रेष्ठ तपश्चरण व चारित्र का अद्भुत प्रभाव जीवों के जीवन पर देखने को मिलेगा। इन प्रसंगों के माध्यम से आपको ज्ञात होगा कि कैसी-२ जीवन शैली वाले मनुष्य भी अपना कल्याण कर सकते हैं, उनके घोर तपश्चरण को देखकर कभी कोई सोच भी नहीं सकता था कि यह जीव कल्याण मार्ग पर इस तरह से प्रवृत्ति करेगा।
इन प्रसंगों से हम सभी को यह भी शिक्षा मिलती है कि यदि कोई नया व्यक्ति धर्म मार्ग में आगे बढ़ना चाहता है तो उसे हतोत्साहित नहीं करना चाहिए बल्कि उसको यथासंभव प्रोत्साहित करना चाहिए। क्या मालूम वह ही भविष्य में अपने कल्याण के साथ-२ दूसरों को भी कल्याण के मार्ग पर ले जाने वाला बन जाए।
? अमृत माँ जिनवाणी से - २३० ?
"मुनि पाय सागरजी का अद्भुत जीवन"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के योग्य शिष्य मुनि श्री १०८ पायसागरजी महराज के विषय में प्रकाश डालना बहुत महत्वपूर्ण प्रतीत होता है, कारण उनके सम्पूर्ण जीवन तथा उनकी वर्तमान चर्या को जानकर पूज्य शान्तिसागरजी महराज की महत्वता सहज ही समझ आ जाती है।
मुनिश्री पायसागर जी महराज से स्तवनिधि क्षेत्र में आचार्य महराज के विषय में चर्चा की, तब उन्होंने कहा था कि "मेरा जीवन उन संतराज के प्रसाद से अत्यंत प्रभावित है।" मेरी कथा इस प्रकार है:-
मैं एक नाटक कंपनी में अभिनेता रहा आया। पश्चात आपसी अनबन होने के कारण मैंने कंपनी छोड़ दी और मै कुछ दिन तक क्रांतिकारी सरीखा रहा। मैंने मिलमलको के विरोध में मजदूरों के सत्याग्रह की प्रवृत्ति को प्रोत्साहन दिया। इसके पश्चात मेरा मन सांसारिक विडम्बना से उचटा।
अपने कुल जैन धर्म से मेरा रंचमात्र भी परिचय नहीं था। मैं णमोकार मत्र को भी नहीं जनता था, इसलिए मैंने जटा विभूतिधारी रुद्राक्षमाला से अलंकृत चिदम्बर बाबा का रूप धारण किया और साधुत्व का अभिनय करता हुआ बम्बई से काशी पहुँचा।
क्रमशः........
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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