?कण्ठ पीड़ा - अमृत माँ जिनवाणी से - २२५
? अमृत माँ जिनवाणी से - २२५ ?
"कण्ठ पीढ़ा"
कवलाना में पूज्य शान्तिसागरजी महराज का वर्षायोग व्यतीत हो रहा था। गले में विशेष रोग के कारण अन्न का ग्रास लेने में अपार कष्ट होता था। बड़े कष्ट से वह थोड़ा-२ आहार लेते थे।
उस समय एक ग्रास जरा बड़ा हो गया, उसे मुँह में लेकर ग्रहण कर ही रहे थे कि वह गले में अटक गया और उस समय उनके मूरछा सरीखे चिन्ह दिखाई पड़े।
चतुर आहार दाता ने दूध से अंजली भर दी और उस दूध से वह ग्रास उतर गया, नहीं तो वह दिन न जाने क्या अनिष्ट दिखाता।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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