?मूक व्यक्ति को वाणी मिली - अमृत माँ जिनवाणी से - २२४
? अमृत माँ जिनवाणी से - २२४ ?
"मूक व्यक्ति को वाणी मिली"
भोजग्राम से वापिस लौटने पर स्तवनिधि क्षेत्र में १०८ पूज्य मुनिश्री पायसागरजी महराज के सन् १९५२ में पुनः दर्शन हुए। उस समय उन्होंने कहा, "आपको एक महत्व की बात और बताना है।"
मैंने कहा, "महराज अनुग्रहित कीजिए।"
उन्होंने कहा, "कोल्हापुर में नीमसिर ग्राम में एक पैंतीस वर्ष का युवक रहता था। उसे अणप्पा दाढ़ी वाले के नाम से लोग जानते थे। वह शास्त्र चर्चा में प्रवीण था। अकस्मात वह गूँगा बन गया। वर्षभर पर्यन्त गुंगेपन के कारण वह बहुत दुखी रहा। लोगों के समक्ष जाने में उसको लज्जा का अनुभव होता था। उसका आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज से विशेष परिचय था। लोग उसे जबरदस्ती आचार्यश्री के पास ले गए।
आचार्य महराज ने कहा, "बोलो-बोलो ! तुम बोलते क्यों नहीं हो?"
फिर उन्होंने कहा, "णमो अरिहंताणं पढ़ो।"
बस, णमो अरिहन्ताणं पढ़ते ही उसका गूंगापन चला गया और वह पूर्ववत बोलने लगा। दर्शक मंडली चकित हो गई।
चार दिन के बाद वह अपने घर लौट आया। वहाँ पहुँचते ही वह फिर गूंगा बन गया। मैं उसके पास पहुँचा। सारी कथा सुनकर मैंने कहा, "वहाँ एक वर्ष क्यों नहीं रहा? जब तुम्हे आराम पहुँचा था, तो इतने जल्दी भाग आने की भूल क्यों की?"
वह पुनः आचार्यश्री के चरणों में पहुँचा। उन तपोमूर्ति साधुराज के प्रभाव से वह पुनः बोलने लगा। वहाँ वह १५ या २० दिन और रहा। इसके बाद वह पुनः गूंगा न हुआ। वह रोग मुक्त हो गया।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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