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?समता तथा सजग वैराग्य - अमृत माँ जिनवाणी से - २२३


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - २२३   ?


             "समता एवं सजग वैराग्य"


              पूज्य शान्तिसागरजी महराज के शिष्य पायसागर महराज ने बताया कि, जब हजारों व्यक्ति भव्य स्वागत द्वारा गुरुदेव पूज्य शान्तिसागरजी महराज के प्रति जयघोष के पूर्व अपनी अपार भक्ति प्रगट करते थे और जब कभी कठिन परिस्थिति आती थी, तब वे एक ही बात कहते थे, "पायसागर ! यह जय-जयकार क्षणिक है, विपत्ति भी क्षणस्थायी है।

        दोनों विनाशीक हैं, अतः सभी त्यागियों को ऐसे अवसर पर अपने परिणामों में हर्ष विषाद नहीं करना चाहिए।"

         मैंने देखा है कि जिनबिम्ब, जिनागम तथा धर्मायतनों की हानि होने पर उनके धर्ममय अंतःकरण को आघात पहुँचता था, किन्तु वे वैराग्य भावना के द्वारा अपनी शांति को सदा अक्षुण्ण रखते थे।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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