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?उत्तूर ग्राम में क्षुल्लक दीक्षा - अमृत माँ जिनवाणी से - २१९


Abhishek Jain

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जय जिनेन्द्र बंधुओं,

       पिछले प्रसंग में पूज्य शान्तिसागरजी महराज की क्षुल्लक दीक्षा के प्रसंग का उपलब्ध वर्णन प्रस्तुत करना प्रारम्भ हुआ था। उसी क्रम में आज का प्रसंग है। पहले भी पूज्यश्री की क्षुल्लक दीक्षा के संबंध की कुछ जानकारी प्रसंग क्रमांक ५३ में प्रस्तुत की गई थी। 

?   अमृत माँ जिनवाणी से - २१९   ?


           "उत्तूर ग्राम में क्षुल्लक दीक्षा"


           जब गुरुदेव देवेन्द्रकीर्ति महराज ने देखा कि सातगौड़ा का यह वैराग्य श्मसान वैराग्य नहीं है, किन्तु संसार से विरक्तशुद्ध आत्मा की मार्मिक आवाज है। उन्हे विश्वास हुआ कि यह महाव्रत की प्रतिष्ठा को कभी लांछित नहीं करेगा, फिर उन्होंने दूर तक सोचा। यह विरक्त व्यक्ति सुखी श्रीमंत परिवार का है और महाव्रती बनने पर अपरिमित कष्ट सहन करने पड़ते हैं, इसीलिए कुछ समय के लिए क्षुल्लक के व्रत देना उचित है, इसके पश्चात यदि पूर्ण पात्रता दिखी, तो निर्ग्रन्थ दीक्षा दी जायेगी। यही बात गुरु देवेन्द्रकीर्तिजी ने इस विरक्त शिष्य सातगौड़ा से कही।

          उन्होंने यह भी कहा कि क्रम पूर्वक आरोहण करने से आत्मा के पतन का भय नहीं रहता है।

           इस प्रकार गुरुदेव की आज्ञानुसार श्री सातगौड़ा पाटील ने उत्तूर ग्राम में ज्येष्ठ सुदी त्रयोदशी शक संवत १८३७, विक्रम संवत १९७२, सन १९१५ में क्षुल्लक दीक्षा लेकर लघुमुनित्व का पद प्राप्त किया। 

       यहाँ यह बात ज्ञातव्य है कि देवप्पा स्वामी से दो-तीन दिन तक चम्पाबाई आत्माराम हजारे, उत्तूर के घर में सातगौड़ा की दीक्षा के बारे में चर्चा चली थी। उस घर में देवप्पा स्वामी २ वर्ष रहे थे।

क्रमशः.........

? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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