?संयमपथ - अमृत माँ जिनवाणी से - २१८
? अमृत माँ जिनवाणी से - २१८ ?
"संयम-पथ"
पिता के स्वर्गवास होने पर चार वर्ष पर्यन्त घर में रहकर सातगौड़ा ने अपनी आत्मा को निर्ग्रन्थ मुनि बनने के योग्य परिपुष्ट कर लिया था। जब यह ४१ वर्ष के हुए, तब कर्नाटक प्रांत के दिगम्बर मुनिराज देवप्पा स्वामी देवेन्द्रकीर्ति महराज उत्तूर ग्राम में पधारे।
उनके समीप पहुँचकर सातगौड़ा ने कहा, "स्वामिन् ! मुझे निर्ग्रन्थ दीक्षा देकर कृतार्थ कीजिए।"
उन्होंने कहा, "वत्स ! यह पद बड़ा कठिन है। इसको धारण करने के बाद महान संकट आते हैं, उनसे मन विचलित हो जाता है।
महराज ने कहा, "भगवन आपके आशीर्वाद से और जिनधर्म के प्रसाद से इस व्रत का निर्दोष पालन करूँगा। प्राणों को छोड़ दूँगा, किन्तु प्रतिज्ञा में दोष नहीं आने दूँगा। मुझे महाव्रत देकर कृतार्थ कीजिए।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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