?आत्महित में शीघ्रता करना चाहिए - अमृत माँ जिनवाणी से - २१६
? अमृत माँ जिनवाणी से - २१६ ?
"आत्महित में शीघ्रता करनी चाहिए"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज कह रहे थे, "भविष्य का क्या भरोसा, अतः शीघ्र आत्मा के कल्याण के लिए व्रत ग्रहण कर लो।" इस प्रसंग में पद्मपुराण का एक वर्णन बड़ा मार्मिक है-
सीता के भाई भामंडल अपने कुटुम्ब परिवार में उलझते हुए यह सोचते थे कि यदि मैंने जिनदीक्षा ले ली, तो मेरे वियोग में मेरी रानियाँ आदि का प्राणांत हुए बिना नहीं रहेगा, अतः कठिनता से त्यागे जाने योग्य, कठिनाई से प्राप्त सुखों को भोग, पश्चात आगे कल्याण पथ में प्रवृत्ति करूँगा।
मैं भोगों से उपार्जित अत्यंत घोर पाप को भी सुध्यान रूपी अग्नि के द्वारा क्षणभर में ही भस्म कर डालूँगा। मैंने अब यह कर लिया, अब यह कर रहा हूँ तथा आगामी यह करूँगा, ऐसा सोचते हुए उसने संहारार्थ आगत यम की ओर तनिक भी ध्यान नहीं दिया।
एक दिन वह अपने सात मंजिल महल में विराजमान था कि अचानक ऊपर से वज्रपात हुआ/ बिजली गिरी और भामंडल मृत्यु की गोद में सो गया।
दीर्घसूत्री प्राणी आगामी होने वाली चेष्टाओं को भलीभाँति जानते हुए भी आत्मा के उद्धार में नहीं लगता है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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