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?संयम में कष्ट नहीं - अमृत माँ जिनवाणी से - २१२


Abhishek Jain

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जय जिनेन्द्र बंधुओं,

     आज का प्रसंग अवश्य पढ़ें। अपने जीवन के कल्याण की चाह रखने वाले सभी श्रावको को पूज्यश्री का यह उदबोधन बहुत आनंद प्रदान करेगा। 

      ऐसी बातों को हम सभी को धर में ऐसी जगह लिखकर रखना चाहिए जहाँ हमारी निगाह बार-२ जाये।

?    अमृत माँ जिनवाणी से - २१२   ?


               "संयम में कष्ट नहीं"


           जो लोग सोचते है कि संयम पालने में कष्ट होता है, उनके संदेह को दूर करते हुए पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज ने मार्मिक देशना में कहा, "संसार के कामों में जितना श्रम, जितना कष्ट उठाया जाता है, उसकी तुलना में व्रती बनने का कष्ट नगण्य है।

       लेन-देन, व्यापार व्यवसाह आदि में, द्रव्य के अर्जन करने में कितना श्रम किया जाता है और उसका फल कितना थोड़ा सा मिलता है?

         इतने दिन सुख भोगते-भोगते संतोष नहीं हो पाया, तो शेष थोड़ी सी जिंदगी में, जिसका जरा भी भरोसा नहीं है, तुम कितना सुख भोगोगे? कितना संचय करोगे?

        व्रती बनकर देवपर्याय में तुम्हे इतना सुख मिलेगा, जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते हो। देवों के दशांग कल्पवृक्षों के द्वारा मनोवांछित सुख की मनोज्ञतम सामग्री प्राप्त होती है, वहाँ निरंतर सुख रहता है। दिन और रात्रि का भेद नहीं रहता है। 

         वहाँ बालपन बुढ़ापा न रह, सदा योवन सुख रहता है। वहाँ पांचवे-छठे काल का संकट नहीं है। वहाँ खाने पीने का कष्ट नहीं है। अपने समय में कंठ में अमृत का आहार हो जाता है।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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