?व्रत के समर्थन में समर्थ वाणी - अमृत माँ जिनवाणी से - २११
? अमृत माँ जिनवाणी से - २११ ?
"व्रत के समर्थन में समर्थ वाणी"
व्रत ग्रहण करने में जो भी भयभीत होते हैं, उनको साहस प्रदान करते हुए पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज बोले, "जरा धैर्य से काम लो और व्रत धारण करो। डर कर बैठना ठीक नहीं है। ऐसा सुयोग अब फिर कब आएगा?
कई लोगों ने व्रतों का विकराल रूप बता-बता कर लोगों को डरा दिया है और भीषणता की कल्पनावश लोग अव्रती रहे आये हैं, यह ठीक नहीं।"
उन्होंने यह भी कहा, "हमारे भक्त, शत्रु, मित्र, सुधारक अथवा अन्य कोई भी हो, हम सब को व्रत ग्रहण करने का उपदेश देते हैं।
व्रत ग्रहण करने वाला आगामी देवायु का नियम से बंध करता है। जिन्होंने इससे अन्य अर्थात नरक, तिर्यंच, मनुष्य आयु का बंध कर लिया है, उसके व्रती बनने का भाव नहीं होते हैं।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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