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?पारणा का दिन - अमृत माँ जिनवाणी से - ३०२


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - ३०२   ?


                "पारणा का दिन"


             पारणा का प्रभात आया। आचार्यश्री ने भक्ति पाठ वंदना आदि मुनि जीवन के आवश्यक कार्यों को बराबर कर लिया। अब चर्या को रवाना  होना है। सब लोग अत्यंत चिंता  समाकुल हैं।

           प्रत्येक नर-नारी प्रभु से यही प्रार्थना कर रहे हैं कि आज आहार निर्विघ्न हो जाए। क्षीण शरीर में खड़े होने की भी शक्ति नहीं दिखता, चलने की बात दूसरी है, और फिर खड़े होकर आहार का हो जाना और भी कठिन दिखता था। ऐसे विशिष्ट क्षणों में घोर तपस्वी महराज उठे। आत्मा के बल ने शरीर को सामर्थ्य प्रदान किया, ऐसा प्रतीत होता था।

                    अब शान्तिसागरजी महराज आहार चर्या को निकले। एक गृहस्थ ने पडगाहा। विधि मिलने से महराज वहाँ ही खड़े हो गए। उस समय उस गृहस्थ के पाँव डर से काँपने लगे कि कहीं अंतराय हो गया तो क्या स्थिति होगी? उस समय एक-एक क्षण बड़ा महत्वपूर्ण था।

              ऐसे अवसर पर चंद्रसागर महराज की विचारकता ने बड़ा कार्य किया। उन्होंने तत्काल ही अपने परिचित दक्षिण के कुशल गृहस्थ से कहा- "क्या देखते हो, तुरंत सम्हाल कर आहारदान की विधि सम्पन्न करो।" तदनुसार आहार दिया गया।

            थोड़ी सी गठी-आँवले की कढ़ी तथा अल्प प्रमाण में धान्य व थोड़ा सा उष्ण जल ही उन्होंने लिया और तत्काल बैठ गए। बस, अब आहारपूर्ण हो गया। अब इस अल्प आहार के बाद आगे लगभग एक पक्ष के बाद ये उग्र तपस्वी मुनिराज आहार लेंगे। इस आहार के निर्विध्न हो जाने से लोंगों को अपार हर्ष हुआ।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
   ?आज की तिथी - चैत्र शुक्ल ४?

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