?भयंकर उपवासों के बीच अद्भुत स्थिरता - अमृत माँ जिनवाणी से - ३०३
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३०३ ?
"भयंकर उपवासों के बीच अद्भुत स्थिरता"
पूज्य शान्तिसागरजी महराज के लंबे उपवासों के बीच में ही प्रायः ललितपुर का चातुर्मास पूर्ण हो गया। बहुत कम लोग उनको आहार देने का सौभाग्य लाभ कर सके।
जैनों के सिवाय जैनेत्तरों में जैन मुनिराज की तपश्चर्या की बड़ी प्रसिद्धि हो रही थी। आचार्य महराज की अपने व्रतों में तत्परता देखकर कोई नहीं सोच सकता, कि इन योगिराज ने इतना भयंकर तप किया है। दूर-दूर के लोंगो ने आकर घोर तपस्वी मुनिराज का दर्शन किया।
धीरे-धीरे वे तपःपुनीत पुण्य दिवस पूर्ण हो गए। अब चातुर्मास समाप्त होने को है। ललितपुर की धार्मिक समाज ने कार्तिक सुदी नवमी से पूर्णिमा पर्यन्त रथोत्सव कराया। हजारों की संख्या में लोग आए। पूर्णिमा को रथ क्षेत्रपाल से बस्ती की ओर निकाला गया।
उस समय आचार्यश्री का शरीर बहुत कमजोर था, किन्तु आत्मा के बल से वे भी जुलूस में सम्मलित हो गए और उन्होंने शहर के मंदिरों की वंदना की, पश्चात क्षेत्रपाल आए। यथार्थ में महराज में असाधारण शक्ति थी।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
?आज की तिथी - चैत्र कृष्ण पंचमी?
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