?चार व्रतियों की निर्वाण दीक्षा - अमृत माँ जिनवाणी से - ३०६
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३०६ ?
"चार व्रतियों की निर्वाण दीक्षा"
चारित्र चक्रवर्ती परम पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज के १९२९ के उत्तरभारत की भूमि पर द्वितीय चातुर्मास के उपरांत उनका विहार बूंदेलखंड के भव्य तीर्थस्थलों की वंदना करते हुए निर्वाण स्थल सोनागिरि को हुआ। सोनागिरि में एक नया इतिहास लिखा गया, पूज्य शान्तिसागरजी महराज की भांति, कर्मनिर्जरा के निमित्त घोर तपश्चरण करने वाले चार शिष्यों को निर्ग्रन्थ दीक्षा का सौभाग्य भी सोनागिरि की भूमि को ही प्राप्त हुआ।
आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज की सोनागिरि यात्रा धार्मिक इतिहास को चिरस्मरणीय वस्तु बन गई, कारण अगहन सुदी पूर्णिमा को नौ बजे सवेरे ऐलक चतुष्टय श्री चंद्रसागरजी, श्री पायसागरजी, श्री पार्श्वकीर्तिजी, श्री नमिसागरजी को आचार्य महराज ने निर्वाण दीक्षा निर्ग्रन्थ पद प्रदान किया।
पार्श्वकीर्तिजी का मुनिराज कुन्थुसागर रखा गया था। उस समय चार महाभाग्यों का एक साथ दिगम्बर दीक्षा घारण इस पंचमकाल की वर्तमान स्थिति में चौथे काल का दृश्य उपस्थित कर रहा था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
?आज की तिथी - चैत्र कृष्ण द्वादशी?
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