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?मुरैना - अमृत माँ जिनवाणी से - ३०८


Abhishek Jain

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बंधुओं, 

       आपके मन में विचार आ सकता है कि हम पूज्य शान्तिसागरजी महराज के पवित्र जीवन चारित्र को जान रहे हैं तो इसके बीच भिन्न-२ ऐतिहासिक धर्म-स्थलों अथवा तीर्थों अथवा व्यक्तियों का उल्लेख क्यों? इसके लिए मेरा उत्तर सिर्फ यही है कि यह हमारा सौभाग्य है कि पूज्यश्री के जीवन चरित्र के साथ हम सभी को उस सब बातों की भी जानकारी मिल रही है जिसकी जानकारी हर एक जैन श्रावक को विरासत और धरोहर के रूप में अवश्य ही होनी चाहिए।

            आज के प्रसंग से तो कई गौरवशाली बातें ज्ञात होंगी। मुरैना पहले जैन धर्म के ज्ञान के लिए केम्ब्रिज जैसा, अन्य धर्मावलंबी विद्वानों के बीच जगह-२ जैन धर्म का पताका फहराने वाले विद्वान आदरणीय गोपालदासजी का व्यक्तित्व आदि।

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ३०८   ?


                       "मुरैना"

     
           ग्वालियर में खूब धर्म प्रभावना के उपरांत संघ माध वदी दूज को प्रसिद्ध विद्वान तथा जैन धर्म के प्रभावक पं. गोपालदास जी बरैया की निवास भूमि पहुँचा, जहाँ उनके द्वारा स्थापित जैन सिद्धांत विद्यालय विद्यमान है। पहले इस विद्यालय की जैन समाज में बड़ी प्रतिष्ठा थी। यह जैन समाज के धर्म विद्या के शिक्षण के लिए आक्सफोर्ड अथवा केम्ब्रिज के विद्या मंदिर के सदृश माना जाता था।

             स्व. बरैयाजी प्रतिभाशाली विद्वान थे। उनके प्रबल तर्क के समक्ष प्रमुख आर्यसमाजी विद्वान दर्शनानंद को शास्त्रार्थ में पराजित होना पड़ा था। कलकत्ता के प्रकांड वैदिक विद्वानों ने उनके तर्कपूर्ण भाषण की बहुत प्रशंसा की थी, त्याय वाचस्पति पदवी दी थी। 

          पं. बरैया त्यागी तथा निष्पृह आदर्श चरित्र विद्वान थे। वे बिना पारिश्रमिक लिए धर्म के ममत्ववश शिक्षा देते थे। वे धन तथा धनिकों के दास नहीं थे। उनका जीवन बड़ा प्रमाणिक था। समाज के श्रेष्ठ विद्वानों में उनकी गणना होती थी। 

      कल प्रसंग में मुरैना में, श्रावको के विवेक के अभाव मे किसी मुनि महराज पर आए प्राणघातक उपसर्ग का इस भावना से उल्लेख किया जायेगा ताकि श्रावक अपने जीवन में इस तरह की त्रुटि कभी भी न होने दें।

  
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?

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