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?आचार्यश्री के दीक्षा गुरु देवेन्द्रकीर्ति मुनि महराज का वर्णन - अमृत माँ जिनवाणी से - २०२


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - २०२    ?


     "आचार्यश्री के दीक्षा गुरु देवेन्द्रकीर्ति         
                    मुनि का वर्णन"


          एक बार मैंने पूज्य शान्तिसागरजी महराज से उनके गुरु के बारें में पूंछा था तब उन्होंने बतलाया था कि "देवेन्द्रकीर्ति स्वामी से हमने जेठ सुदी १३ शक संवत १८३७ में क्षुल्लक दीक्षा ली थी तथा फाल्गुन सुदी एकादशी शक संवत १८७१ में मुनि दीक्षा ली थी। वे बाल ब्रम्हचारी थे, सोलह वर्ष की अवस्था में सेनगण की गद्दी पर भट्टारक बने थे।

      उस समय उन्होंने सोचा था कि गद्दी पर बैठे रहने से मेरी आत्मा का क्या हित सिद्ध होगा, मुझे तो झंझटों से मुक्त होना है, इसीलिए दो वर्ष बाद उन्होंने निर्ग्रन्थ वृत्ति धारण की थी। उन्होंने जीवन भर आहार के बाद उपवास और उपवास के बाद आहार रूप पारणा-धारणा का व्रत पालन किया था।"


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

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