?शेर आदि का उनके पास प्रेम भाव से निवास व ध्यान कौशल - अमृत माँ जिनवाणी से - २०१
? अमृत माँ जिनवाणी से - २०१ ?
"शेर आदि का उनके पास प्रेम भाव से
निवास व ध्यान कौशल"
पूज्य शान्तिसागरजी महराज गोकाक के पास एक गुफा में प्रायः ध्यान किया करते थे। उस निर्जन स्थान में शेर आदि भयंकर जंतु विचरण करते थे। प्रत्येक अष्टमी तथा चतुर्दशी को उपवास तथा अखंड मौन धारण कर ये गिरी कंदरा में रहते थे।
वहाँ अनेक बार व्याघ्र आदि हिंसक जंतु इनके पास आ जाया करते थे, किन्तु साम्यभाव भूषित ये मुनिराज निर्भीक हो आत्मध्यान में संलग्न रहते थे।
गोकाक के पास कोंनुर की गुफा में भी सर्प ने आकर इन पर उपसर्ग किया था, किन्तु ये मुनिराज अपने साम्यभाव से विचलित नहीं हुए। महराज जब ध्यान में मग्न होते थे, तब उनकी तल्लीनता को वज्र द्वारा भी भंग नहीं किया जा सकता था।
एक समय वे आषाढ वदी अष्टमी को समडोली में अष्टमी की संध्या से जो ध्यान में बैठे, तो नवमीं की प्रभात तक नही उठे। दस बजे तक लोगों ने प्रतीक्षा की, पश्चात चिंतातुर भक्तों ने दरवाजा तोड़कर भीतर घुसकर देखा तो महराज ध्यान में ही मग्न पाये गए। उस समय हल्ला होने पर भी उनकी समाधि भंग नहीं हुई थी।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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