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?आचार्यश्री जिनसे प्रभावित थे ऐसे आदिसागर मुनिराज का वर्णन - अमृत माँ जिनवाणी से - २०३


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - २०३    ?


      "आचार्यश्री जिनसे प्रभावित थे ऐसे 
            आदिसागर मुनि का वर्णन"


            पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महराज ने एक आदिसागर (बोरगावकर) मुनिराज के विषय में बताया था कि वे बड़े तपस्वी थे और सात दिन के बाद आहार लेते थे। शेष दिन उपवास में व्यतीत करते थे। यह क्रम उनका जीवन भर रहा।

       आहार में वे एक वस्तु ग्रहण करते थे। वे प्रायः जंगल में रहा करते थे। जब वे गन्ने का रस लेते थे, तब गन्ने के रस के सिवाय अन्य पदार्थ ग्रहण नहीं करते थे। उनमें बड़ी शक्ति थी।

       उनकी आध्यात्मिक पदों को गाने की आदत थी। वे कन्नड़ी भाषा में पदों को गाया करते थे। वे भोज में आया करते थे। जब वे भोज में आते थे और हमारे घर में उनका आहार होता था, तब वे उस दिन हमारी दुकान में रहते थे। वहाँ ही वे रात्रि में सोते थे। हम भी उनके पास में सो जाते थे।

          हम निरंतर उनकी वैय्यावृत्ति तथा सेवा करते थे। दूसरे दिन हम उनको दूधगंगा, वेदगंगा नदी के संगम के पास तक पहुंचाते थे। बाद में हम उन्हें अपने कंधे पर रखकर नदी के पार ले जाते थे।

        मैंने पूंछा, "महराज ! एक उन्नत काय वाले मनुष्य को अपने कंधे पर रखकर ले जाने में आपके शरीर को बड़ा कष्ट होता होगा?"

      महराज ने कहा, "हमें रंच मात्र भी पीड़ा नहीं होती थी।"


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

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