?अपार तेजपुंज - अमृत माँ जिनवाणी से - १९६
? अमृत माँ जिनवाणी से - १९६ ?
"अपार तेजपुंज"
भट्टारक जिनसेन स्वामी ने पूज्य शान्तिसागरजी महराज के बारे में अपना अनुभव इस सुनाया-
सन् १९१९ की बात है, आचार्य शान्तिसागरजी महराज हमारे नांदणी मठ में पधारे थे। वे यहाँ की गुफा में ठहरे थे। उस समय वे ऐलक थे। उनके मुख पर अपार तेज था। पूर्ण शांति भी थी।
वे धर्म कथा के सिवाय अन्य पापाचार की बातों में तनिक भी नहीं पड़ते थे। मैं उनके चरणों के समीप पहुँचा, बड़े ध्यान से उनकी शांत मुद्रा का दर्शन किया। उन्होंने मेरे अंतःकरण को बलवान चुम्बक की भाँति आपनी ओर आकर्षित किया था।
नांदणी में हजारों जैन अजैन नर-नारियों ने आ-आकर उन महापुरुष के दर्शन किये थे। सभी लोग उनके साधारण व्यक्तित्व, अखंड शांति, तेजोमय मुद्रा से अत्यंत प्रभावित हुए थे।
उनका तत्व प्रतिपादन अनुभव की कसौटी पर कसा, अत्यंत मार्मिक तथा अन्तःस्थल को स्पर्श करने वाला होता था। लोग गंभीर प्रश्न करते थे, किन्तु उनके तर्क संगत समाधान से प्रत्येक शंकाशील मन को शांति का लाभ हो जाता था।
उनकी वाणी मे उग्रता या कठोरता अथवा चिढ़चिढ़ापन रंचमात्र भी नहीं था। वे बड़े प्रेम से प्रसन्नता पूर्वक संयुक्तिक उत्तर देते थे। उस समय मेरे मन पर ऐसा प्रभाव पड़ा कि इन समागत साधु चुडामणि को ही अपने जीवन का आराध्य गुरु बताएँ और इनके चरणों की निरंतर समाराधना करूँ।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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