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गरीबों के उद्धारक - अमृत माँ जिनवाणी से - १९१


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १९१    ?


               "गरीबों के उद्धारक"


           पूज्य शान्तिसागरजी महराज के दीक्षा लेने के उपरांत गाँव में पुराने लोगों में जब चर्चा चलती थी, तब लोग यही कहते थे कि हमारे गाँव का रत्न चला गया। गरीब लोग आँखों से आँसू बहाकर यह कहकर रोते थे कि हमारा जीवन दाता चला गया।

         शूद्र लोग उनके वियोग से अधिक दुखी हुए थे, क्योंकि उन दीनों के लिए वह करुणासागर थे। वे कहते थे कि अभी तक हममें जो कुछ अच्छी बातें हैं, उसका कारण वह स्वामीजी ही हैं। हमने कभी चोरी नहीं की, मिथ्या भाषण भी नहीं किया, कुशील सेवन भी नहीं किया तथा दूसरों की बहु बेटियों को माता और बहिन की दृष्टि से देखा, इसका कारण महराज का पवित्र उपदेश है।

       वे कभी भी व्यर्थ बातें नहीं करते थे। गप्पें भी नहीं लगाया करते थे। हम सबको व्यर्थ की बातें करने से रोकते थे। स्वामी ने स्वप्न में दो तीन बार दर्शन दिए। अब जीवन में उनका दर्शन कहाँ होगा? यह सारा वृत्तांत ८० वर्ष के वृद्ध ने पूज्य शान्तिसागरजी महराज के गृहस्थ जीवन के बारे में बताए।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?
 ?आज की तिथी - मार्गशीर्ष कृष्ण ३?


पूज्य शान्तिसागरजी महराज के जीवन चरित्र को प्रकाशित करने हेतु चल रही, प्रसंगों की श्रृंखला के संबंध में आप कोई सुधारात्मक सुझाव देना चाहें तो आप 9321148908 पर सुझाव भेज सकते हैं।

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