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?मुनिभक्त - अमृत माँ जिनवाणी से - १९२


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - १९२    ?


                     "मुनिभक्त"

   
          सातगौड़ा मुनिराज के आने पर कमण्डलु लेकर चलते थे और खूब सेवा करते थे। हजारों आदमियों के बीच में स्वामी का इन पर अधिक प्रेम रहा करता था।

         वे भोजन को घर में आते तथा शेष समय दुकान पर व्यतीत करते थे। वहाँ वे पुस्तक बाँचने में संलग्न रहते थे।

        उनकी माता का स्वभाव बड़ा मधुर था। वे हम सब लड़कों को अपने बेटे के समान मानती थी। वे हमें कहती थी, "कभी चोरी नहीं करना, झूठ नहीं बोलना, अधर्म नहीं करना। उनके घर में घी, दूघ का विपुल भंडार रहता था।"


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

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