?शांत प्रकृति - अमृत माँ जिनवाणी से - १९०
? अमृत माँ जिनवाणी से - १९० ?
"शांत प्रकृति"
सातगौड़ा बाल्यकाल से ही शांत प्रकृति के रहे हैं। खेल में तथा अन्य बातों में इनका प्रथम स्थान था। ये किसी से झगडते नहीं थे, प्रत्युत झगड़ने वालों को प्रेम से समझाते थे।
वे बाल मंडली में बैठकर सबको यह बताते थे कि बुरा काम कभी नहीं करना चाहिए। वे नदी में तैरना जानते थे। उनका शारीरिक बल आश्चर्य-प्रद था।
उनका जीवन बड़ा पवित्र और निरुपद्रवी रहा है। वे कभी भी किसी को कष्ट नहीं देते थे। वे करुणा भाव पूर्वक पक्षियों को अनाज खिलाते थे।
वे मेला, ठेला तथा तमाशों में नहीं आते थे। केवल धार्मिक उत्सवों में भाग लेते थे। हम लोगों को उपदेश देते थे कि अपना काम ठीक से करना चाहिए व व्यर्थ की बातों में नहीं पड़ना चाहिए।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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