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लोक कल्याण की उमंग - अमृत माँ जिनवाणी से - ११२


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - ११२   ?


             "लोककल्याण की उमंग"


                    कुंभोज बाहुबली क्षेत्र पर आचार्यश्री पहुँचे। उनके पवित्र ह्रदय में सहसा एक उमंग आई, कि इस क्षेत्र पर यदि बाहुबली भगवान की एक विशाल मूर्ति मिराजमान हो जाए, तो उससे आसपास के लाखों की संख्या वाले ग्रामीण जैन कृषक-वर्ग का बड़ा हित होगा। महाराज ने अपना मनोगत व्यक्त किया ही था, कि शीघ्र ही अर्थ का प्रबंध हो गया।

         उस प्रसंग पर आचार्य महाराज ने ये मार्मिक उद्गार व्यक्त किये थे- "दक्षिण में श्रवणबेलगोला को साधारण लोग कठिनता से पहुँचते हैं, इससे सर्वसाधारण के हितार्थ बाहुबली क्षेत्र पर २८ फुट ऊँची बाहुबली भगवान की मूर्ति विराजमान हो। मेरी यह हार्दिक भावना थी। अब उसकी पूर्ति हो जायेगी, यह संतोष की बात है।"

         महाराज की इस भावना का विशेष कारण है। महाराज मिथ्यात्व त्याग को धर्म का मूल मानते रहे हैं। भोले गरीब जैन अज्ञान के कारण लोकमूढ़ता, देवमूढ़ता, गुरुमूढ़ता के फंदे में फस जाते हैं। 

         महराज लोगों से कहते थे- "कुदेव, कुगुरु और कुशास्त्र का आश्रय कभी मत ग्रहण करो। कुगुरु की वंदना मत करो। उनकी बात भी मत सुनो। यह संसार बढ़ाने का कारण है। इससे बड़ा कोई पाप नहीं है। मिथ्यात्व से बड़ा पाप दूसरा नहीं है। 

           इस विशाल मूर्ति की भक्ति द्वारा साधारण जनता का  अपार कल्याण होगा। सचमुच में मूर्ति कल्पवृक्ष होगी।" आज आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की भविष्यवाणी अक्षरतः चरितार्थ हो रही है।

?चौबीसवाँ दिन - ६ सितम्बर१९५५?

           आचार्यश्री की स्थिति से उपस्थित जनसमूह को अवगत कराने हेतु जनसभा रखी गई। पूज्यश्री ने दोनों समय जनता को दर्शन देकर जतना को तृप्त किया।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?

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