सबकी शुभकामना - अमृत माँ जिनवाणी से - ११३
? अमृत माँ जिनवाणी से - ११३ ?
"सबकी शुभकामना"
पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज वास्तव में लोकोत्तर महात्मा थे। विरोधी व विपक्षी के प्रति भी उनके मन मे सद्भावना रहती थी। एक दिन मैंने कहा- "महाराज ! मुझे आशीर्वाद दीजिये, ऐसी प्रार्थना है।
महाराज ने कहा था- "तुम ही क्यों जो भी धर्म पर चलता है, उसके लिए हमारा आशीर्वाद है कि वह सद्बुद्धि प्राप्त कर आत्मकल्याण करे।"
?पच्चीसवाँ दिन - ७ सितम्बर११५५?
सल्लेखना का आज २५ वां दिन था। ४ सितम्बर के बाद जल ग्रहण ना करने का तीसरा दिन। कमजोरी बहुत बड़ गई थी, फलतः चक्कर भी आने लगे। बिना लोगों के सहारे के खड़े होना मुश्किल हो गया था, फिर भी जनता को दोनो समय दर्शन दिए।
आज जब लोगों ने आचार्यश्री से चर्चा के समय जल ग्रहण करने के लिए निवेदन किया तो आचार्यश्री ने यही उत्तर दिया कि चूंकि बिना सहारे शरीर खड़ा भी नही हो सकता, अतः पवित्र दिगम्बर साधु चर्या को सदोष नही बनाया जा सकता, जैसी कि शास्त्र आज्ञा है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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