?मुनिबंधु को संदेश - अमृत माँ जिनवाणी से - १०९
? अमृत माँ जिनवाणी से - १०९ ?
"मुनिबन्धु को सन्देश"
उस समय ९२ वर्ष की वय वाले मुनिबन्धु चरित्र चूड़ामणि श्री १०८ वर्धमान सागर महाराज के लिए पूज्यश्री ने सन्देश भेजा था कि- "अभी १२ वर्ष की सल्लेखना के ६-७ वर्ष तुम्हारे शेष हैं। अतः कोई गड़बड़ मत करना। जब तक शक्ति है तब तक आहार लेना। धीरज रखकर ध्यान किया करना।
हमारे अंत पर दुखी नहीं होना और परिणामों में विगाड मत लाना। शक्ति हो तो समीप में विहार करना। नहीं तो थोड़े दिन शेडवाल बस्ती में और थोड़े दिन शेडवाल के आश्रम में समय व्यतीत करना।
अपने घराने में पिता, पितामह आदि सभी सल्लेखना करते आये हैं, इसी प्रकार तुम भी उस परम्परा का रक्षण करना। इससे स्वर्ग-मोक्ष मिलता है। अच्छे भाव से ध्यान करते गए, तो स्वर्ग मिलेगा, मोक्ष मिलेगा, इसमे संदेह नहीं है।"
?इक्कीसवाँ दिन - ३ सितम्बर १९५५ ?
आज पूज्यश्री ने जल लिया। दोपहर में पाँच मिनिट को आचार्यश्री बाहर आये और जनता को दर्शनों का पुण्यलाभ कराया। दोपहर में पं. जगमोहनजी शास्त्री कटनी, पं. मख्खनलालजी शास्त्री मोरेना, ब. राजकुमारसिंहजी इंदौर, पं. सुमेरचंद जी दिवाकर आदि ने उपस्थित जनता को संबोधा।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
0 Comments
Recommended Comments
There are no comments to display.