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आध्यात्मिक सूत्र - अमृत माँ जिनवाणी से - १०८


Abhishek Jain

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?   अमृत माँ जिनवाणी से - १०८   ?


                "आध्यात्मिक सूत्र"


              एक दिन दिवाकरजी पूज्य क्षपकराज आचार्यश्री शान्तिसागरजी के सम्मुख आचार्य माघनन्दी रचित आध्यात्मिक सूत्रो को पढ़ने लगा।

        उन्होंने कहा- "महाराज देखिये ! जिस आत्मस्वरुप के चिन्तवन में आप संलग्न हैं और जिसका स्वाद आप ले रहे हैं उसके विषय में आचार्य के सूत्र बड़े मधुर लगते है, चिदानंद स्वरूपोहम (मै चिदानंद स्वरुप हूँ), ज्ञानज्योति-स्वरूपोहम (मै ज्ञान ज्योति स्वरुप हूँ), शुद्धआत्मानुभूति-स्वरूपोहम (मै शुद्ध आत्मानुभूति स्वरुप हूँ), अनंतशक्ति-स्वरूपोहम (मैं अनंत स्वरुप हूँ), कृत्कृत्योंहम (मै कृत-कृत्य हूँ), सिद्धम स्वरूपोहम (मै सिद्ध स्वरुप हूँ), चैतन्यपुंज-स्वरूपोहम (मै चैतन्यपुंज रूप हूँ).........

         इसे सुनकर महाराज ने कहा- "यह कथन भी आत्मा का यथार्थ रूप नहीं बताता है। अनुभव की अवस्था दूसरे प्रकार की होती है। जब आत्मा ज्ञानादि गुणों से परिपूर्ण है, तब बार-बार 'अहं' क्या कहते हो। मै जो हूँ सो हूँ। बार-बार 'मैं', 'मैं' क्यों कहते हो।" यह कहकर गुरुदेव चुप हो गए। उक्त कथन महायोगी के अनुभव पर आश्रित था। उनकी गंभीरता मनीषियों के मनन योग्य है।


? बीसवाँ दिन - २ सितम्बर १९५५  ?

                     आज चार दिन के बाद जल ग्रहण किया। साढ़े तीन बजे दिन में आचार्यश्री १० मिनिट को गुफा से बाहर आये थे और जनता को दर्शनों का पुण्यलाभ कराया था। आज के दिन पंडित जगमोहनलालजी शास्त्री दर्शनार्थ पधारे। आपका दोपहर में सम्बोधन वा रात्रि में शास्त्र प्रवचन हुआ।


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?

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