आत्मध्यान - अमृत माँ जिनवाणी से - १०६
? अमृत माँ जिनवाणी से - १०६ ?
"आत्मध्यान"
'आत्मा का चिंतन करो', यह बात दो या तीन वषों से पुनः-पुनः दोहरा रहे थे। उन्होंने सन् १९५४ में फलटण में चातुर्मास के पूर्व सब समाज को बुलाकर कहा था- "तुम अपना चातुर्मास अपने यहाँ कराना चाहते हो, तो एक बात सबको अंगीकार करनी पड़ेगी।"
सबने उनकी बात शिरोधार्य करने का वचन दिया।
पश्चात् महाराज ने कहा- "सब स्त्री पुरुष यदि प्रतिदिन कम से कम पाँच मिनिट पर्यन्त आत्मा का चिंतवन करने की प्रतिज्ञा करते हैं तो हम तुम्हारे नगर में चातुर्मास करेंगे, अन्यथा नहीं।"
श्रेष्ठ साधुराज के समागम का सौभाग्य सामान्य नहीं था। सब लोगों ने गुरुदेव की आज्ञा स्वीकार की थी। आत्मचिन्तवन में उनको अपूर्व आनंद आता था, इससे वे लोक हितार्थ इसकी प्रेरणा करते थे।।
? अठारहवां दिन - ३१ अगस्त १९५५ ?
जल ग्रहण ना करने का यह तीसरा दिन है। दोनों समय उपस्थित जनता को दर्शन दिए और शुभाशीर्वाद दिया।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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