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अद्भुद दृश्य - अमृत माँ जिनवाणी से - १०५


Abhishek Jain

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?     अमृत माँ जिनवाणी से - १०५     ?


                   "अद्भुत दृश्य"

    
          यम समाधि के बारहवें दिन ता. २६ अगस्त को महाराज जल लेने को उठे। उनकी चर्या में तनिक भी शिथिलता नहीं थी।

           मंदिर में भगवान का अभिषेक उन्होंने बड़े ध्यान से देखा। इससे समाधि की परम बेला में भी वे अभिषेक को देखकर निर्मलता प्राप्त करते थे। बाद में महाराज चर्या को निकले। हजारों की भीड़ उनकी चर्या देखने को पर्वत पर एकत्रित थी। अद्भुत दृश्य था। 

          नवधाभक्ति के बाद महाराज के बाद महाराज ने खड़े-खड़े अपनी अंजली द्वारा थोडा-सा जलमात्र लिया और पश्चात् वे क्षण भर में ही बैठ गए। कुछ क्षण बाद गमनकर अपनी कुटी में आये और पुनः आत्मचिंतन में निमग्न हो गए।

           आत्मचिंतन उनका प्रिय व् अभ्यस्त कार्य था। संसार को वह कार्य बड़ा कठिन लगता है। वास्तव में वे महान योगी थे।


?  सत्रहवाँ दिन - ३० अगस्त १९५५  ?


                   आज जल ग्रहण नहीं करने का दूसरा दिन है। दोपहर में जनता को दर्शन दिए। गश आ जाने से महाराज लेट गए। स्वप्न में उन्हें मालूम हुआ कि श्री कुलभूषण देशभूषण भगवान उन्हें ऊपर बुला रहे हैं। दरवाजे के ऊपर जो छोटा मंदिर है, उसमे यह घटना हुई।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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