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जलग्रहण का रहस्य - अमृत माँ जिनवाणी से - १००


Abhishek Jain

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☀जय जिनेन्द्र बन्धुओं,

           आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के जीवन चरित्र का यह प्रसंग सूक्ष्मता से अवलोकन करने पर ज्ञात होगा कि यह प्रसंग सल्लेखना प्राप्ति की पवित्र भावना के साथ धर्म-ध्यान करने वाले हर एक श्रावक के लिए योग्य मार्गदर्शन है।

?     अमृत माँ जिनवाणी से - १००     ?


              "जलग्रहण का रहस्य"


         आचार्य महाराज ने यम सल्लेखना लेते समय केवल जल लेने की छूट रखी थी। इस सम्बन्ध में मैंने कहा - "महराज ! यह जल की छूट रखने का आपका कार्य बहुत महत्व का है। वास्तव में आपने विवेकपूर्ण कार्य किया है। आपके जीवन भर के कार्यों में हमें विवेकपूर्ण प्रवृत्ति का ही दर्शन होता रहा है:

       गौतम स्वामी ने जिनेन्द्र से पूंछा था- "भगवन ऐसा उपाय बताइये कि जिससे पापों का भार ना उठाना पड़े।"

       भगवान का कहना था- "विवेकपूर्वक कार्य करो जिससे पापों का बंध नहीं होगा।"

     यह सुनकर महराज बोले- "हमने देखा है, जल नहीं ग्रहण करने के कारण आठ दस त्यागियों की बुरी हालत हुई है अतः हमने जल का त्याग नहीं किया है।"

        उन्होंने यह भी कहा था- "हमने पानी लेने की छूट भी इसलिए रखी है, कि इससे दूसरे त्यागी भाइयों को मार्गदर्शन होता रहे। नहीं तो हमारा अनुकरण करने पर बहुतों की असमाधि हो जावेगी।"


?  १२ वां दिन - २५ अगस्त १९५५ ?


         आज पूज्यश्री ने जल ग्रहण किया। दोनों समय दर्शन देकर जनता को कृतार्थ किया। आज दर्शन देने के पश्चात् दिल्ली से पं. शिखरचंदजी (मैनेजर) महासभा, लाला ऋखवदासजी, रामसिहजी (खेकड़ा वाले) आदि दर्शनार्थ पधारे।

    श्री पं. सुमेरचंदजी दिवाकर न्यायतीर्थ बी.ए., एल.एल.बी., सिवनी, पं. इंद्रलालजी शास्त्री जयपुर, पं. मख्खनलालजी दिल्ली, भट्टारक जिनसेनजी के प्रवचन हुए।


?  स्वाध्याय चरित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

☀आज हर्ष का विषय है कि आज पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के जीवन के प्रसंगों की प्रस्तुती का १०० वां प्रसंग है। यह सब आपकी रूचि का ही प्रतिफल है।

        सभी की रूचि के आधार पर हमारे सभी महापुरुषों के जीवनचरित्र को प्रकाशित करने वाली यह श्रृंखला लगातार चलती रहेगी। जो इन प्रसंगों को प्राप्त ना करना चाहते हों या प्राप्त करना चाहते हो तो 9321148908 पर whatsup के माध्यम से संपर्क करें।

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