सप्तम प्रतिमा धारण - अमृत माँ जिनवाणी से - ९९
? अमृत माँ जिनवाणी से - ९९ ?
"सप्तम प्रतिमा धारणा"
कल के प्रसंग में हमने देखा कि बाबूलाल मार्ले कोल्हापुर वालों ने पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज का कमंडल पकड़ने हेतु भविष्य में क्षुल्लक दीक्षा लेने की भावना व्यक्त की।
बाबूलाल मार्ले ने महाराज का कमण्डलु उठा लिया, तब महाराज बोले- "देखो ! क्षण भर का भरोसा नहीं है। कल क्या हो जायेगा यह कौन जानता है। तुम आगे दीक्षा लोगे यह ठीक है किन्तु बताओ ! अभी क्या लेते हो।"
उक्त व्यक्ति की अच्छी होनहार होने से उसने कह दिया- "महाराज, "मै सप्तम प्रतिमा लेता हूँ।"
महाराज ने कहा- " "अच्छा" । उन्होंने महाराज के चरणों को प्रणाम किया। महाराज ने पिच्छी सर पर रखकर अपना पवित्र आशीर्वाद दिया। छोटे से विनोद का इतना मधुर पवित्र परिपाक हुआ। एक व्यक्ति धन-वैभव के होते हुए भी गुरुदेव के प्रसाद से ब्रम्हाव्रती हो गया।
? ग्यारहवाँ दिन - २४ अगस्त १९५५ ?
पूज्यश्री ने आज जल ग्रहण किया। दोनों समय जनता को दर्शन दिए। देहली से लाला महावीरप्रसादजी ठेकेदार, रतनलाल जी मदिपुरिया, लाला उफतरायजी, रधुवीर सिंह जी जैना वाच वाले, ब्र. इंद्रलालजी शास्त्री जयपुर, ब्र. सूरजमलजी, ब्र. पं. श्रीलाल जी दर्शनार्थ पधारे।
आज क्षुल्लकों की संख्या १२, क्षुल्लिकाऐ ५ और ब्रम्हचारी १५ हो गये। सल्लेखना के समय शास्त्रानुसार दिगंबर यति आचार्य पद छोड़ देते हैं, अतः आचार्यश्री ने भी तदनुसार आचार्य पद त्याग करने की धोषणा की और अपने प्रथम शिष्य श्री १०८ वीरसागरजी महाराज को आचार्य घोषित किया।
चूँकि १०८ वीरसागर जी महाराज इस अवसर पर जयपुर में विराजमान थे, अतः घोषणापत्र लिखवाकर उनके पास भिजवाया गया। आज दर्शनार्थियों की संख्या ३००० से अधिक थी।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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