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जनगौड़ा पाटील को देशना - अमृत माँ जिनवाणी से - ९७


Abhishek Jain

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?     अमृत माँ जिनवाणी से - ९७     ?


          "जनगौड़ा पाटील को देशना"


                    कुंथलगिरि में पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के गृहस्थ जीवन के छोटे भाई कुमगोंडा पाटील के चिरंजीव श्री जनदौड़ा पाटील जयसिंगपुर से सपरिवार आए थे। आचार्य महाराज के चरणों को उन्होंने प्रणाम किया। 

                 बाल्यकाल में जनगौड़ा आचार्य महराज की गोद में खूब खेल चुके थे, जब महाराज शान्तिसागरजी सातगौड़ा पाटील थे। उस समय का स्नेह दूसरे प्रकार का था, अब का स्नेह वीतरागता की ओर ले जाने वाला था।

                  जनगोंडा को महाराज ने कहा- "देखो ! हमने यम समाधि ली है और हम अब शीघ्र जाने वाले हैं। तुमको भी संयम धारण करना चाहिए। इसके सिवाय जीव का हित नहीं है।"

               जनगौड़ा ने कहा था- "महाराज क्या करूँ ? जो आज्ञा हो वह करने को तैयार हूँ।

              महाराज बोले- "तुमको हमारी तरह ही दीक्षा धारण करना चाहिए। इससे अधिक आनंद व् शांति का दूसरा मार्ग नहीं है।"

           जनगोंडा ने कहा था- "महाराज ! कुछ वर्षों की साधना के पश्चात् मुनि बनने की मै प्रतिज्ञा करना हूँ।"

           पश्चात् महाराज ने जनगोंडा की स्त्री लक्ष्मीदेवी को बुलाकर पूंछा था- "यदि यह मुनि बनता है तो तुमको कोई आपत्ति तो नहीं है?"

              वह महिला बोली- "महाराज ! कल के बदले यदि वे आज ही मुनि बनना चाहें, तो मेरी ओर से कोई भी रोक-टोक नहीं है।" यह बात सुनकर उन क्षपकराज को बहुत शांति मिली। महाराज ने उन बाई को व्रत प्रतिमा दी। क्षण भर में वे दंपत्ति व्रती श्रावक बन गए।

?   ९ वाँ दिन  - २२ अगस्त १९५५   ?

                  आज भी पूज्यश्री ने जल ग्रहण नहीं किया। आचार्यश्री की उपस्थिति में श्री भट्टारक लक्ष्मीसेन की अध्यक्षता में आचार्य शान्तिसागर जिनवाणी जीर्णोधारक संस्था के मंत्री श्री बालचंदजी देवचंदजी शहा, बी.ए सोलापूर को मानपत्र समर्पित किया गया। आचार्यश्री ने उनको आशीर्वाद दिया।

?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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