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यम सल्लेखना - अमृत माँ जिनवाणी से - ८९


Abhishek Jain

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?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८९     ?


                  "यम सल्लेखना"
         

            आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के चरणों के समीप रहने से मन में ऐसा विश्वास जम गया था, कि आचार्य महाराज जब भी सल्लेखना स्वीकार करेंगे तब नियम सल्लेखना लेंगे, यम सल्लेखना नहीं लेंगे। 

             ऐसे ही उनका मनोगत अनेक बार ज्ञात हुआ था। मुझे यह विश्वास था कि, उनकी सल्लेखना नियम सल्लेखना के रूप में प्रारम्भ होगी किन्तु भविष्य का रूप किसे विदित था ? 

                 जिसकी स्वप्न में भी कल्पना न थी, वह साक्षात् हो गया। श्रवणराज आचार्य शान्तिसागरजी महाराज ने यम सल्लेखना ले ली। उसे लिए चार दिन हो गए। कुंथलगिरि से भी मुझे समाचार नहीं मिला।

          २२ अगस्त १९५५ को १ बजे मध्यान्ह में फलटण से इंद्रराज गांधी का तार मिला : 

-Acharya maharaj started Yama sallekhana from four days, starte first train kunthalgiri-

('आचार्य महाराज ने चार दिन हुए यम सल्लेखना ले ली है। शीघ्र ट्रेन से कुंथलगिरि पहुंचिए।')

                मै अवाक हो गया। चित्त घबरा गया। अकल्पित बात हो गई। तत्काल ही मैंने गुरुदेव के दर्शनार्थ प्रस्थान किया।

                  मैं २२ अगस्त को १२ बजे दिन की मोटर से नागपुर ७.३० बजे रात को पहुँचा वहाँ रेल से शेगाँव गया। पश्चात् मोटर से देवलगाँव, बागरुल, जालना होते हुए तारीख २३ की रात को १० बजे कुंथलगिरि पहुँचा। 

           उस समय मूसलाधार वर्षा हो रही थी। एक घंटा स्थान पाने की परेशानी के उपरांत मुझ अकेले को स्थान मिल पाया।

?    प्रथम दिन- १४ अगस्त १९५५    ?

               आचार्यश्री ने प्रातः नौ बजे आहार में बादाम का पानी ग्रहण किया और तदनंतर उपस्थित जनता के सम्मुख एक सप्ताह की नियम सल्लेखना धारण करने की घोषणा की। महाराज को अंतिम आहार देने का श्रेय बारामती के गुरु-भक्त सेठ चंदूलाल सराफ को प्राप्त हुआ।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

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