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सल्लेखना के लिए मानसिक तैयारी - अमृत माँ जिनवाणी से - ८८


Abhishek Jain

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?     अमृत माँ जिनवाणी से - ८८     ?


    "सल्लेखना के लिए मानसिक तैयारी"


                    यम सल्लेखना लेने के दो माह पूर्व से ही पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के मन में शरीर के प्रति गहरी विरक्ति का भाव प्रवर्धमान हो रहा था। 

            इसका स्पष्ट पता इस घटना से होता है। कुंथलगिरि आते समय एक गुरुभक्त ने महाराज की पीठ दाद रोग को देखा। उस रोग से उनकी पीठ और कमर का भाग विशेष व्याप्त था।

         भक्त ने कहा- "महाराज ! इस दाद की दवाई क्यों नहीं करते ? दवा लगाने से यह दूर हो जाएगी।"

          महाराज बोले- "अरे ! इसमें बहुत दवाई लगाई गई। तेजाब तक लगाया गया; किन्तु यह बीमारी हमारा पिण्ड नहीं छोड़ती है। हमारे पास एक दवाई है, उसे लगायेंगे तो यह रोग नष्ट हो जाएगा और शरीर रोगमुक्त हो जाएगा।

            भक्त बोला- "अभी दवा क्यों नहीं लगाते ? आगे लगावेंगे, ऐसा क्यों कहते हैं ? बताइये, कौन दवा है ? मै लगा दूँगा।"

                महाराज बोले- "अरे ! वह दवा तू नहीं जानता। मै उसे दो माह में लगाकर इस शरीर को पूरा ठीक कर दूँगा।


?  स्वाध्याय चरित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का  ?

☀आज से पूज्य आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की सल्लेखना के प्रसंग प्रेषित किये जा रहें हैं। सभी अवश्य पढ़ें। 

        आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज जैसे महान तपस्वी मुनिराज की जीवन भर की घोर साधना का निचोड़ उनकी सल्लेखना के प्रसंगों को पढ़कर हम उनकी साधना को समीप से अनुभव कर पाएँगे। इसका पूर्ण लाभ "चरित्र चक्रवर्ती" ग्रन्थ को पढ़कर लिया जा सकता है। उसको हर श्रावक को पढ़ना ही चाहिए। 

          पंडित श्री सुमेरचंद जी दिवाकर जी ने इतनी सुन्दर शैली में पूज्य श्री के जीवन को अभिव्यक्त किया है हम सभी श्रावकगण भी उनके बहुत ही आभारी हैं।

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