पतित का उद्धार कार्य - अमृत माँ जिनवाणी से - ८७
? अमृत माँ जिनवाणी से - ८७ ?
"पतित का उद्धारकार्य"
आचार्यश्री अनंतकीर्ति महाराज ने एक घटना का जिक्र किया कि एक बार आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज कुंभोज पहुँचे।
एक व्यक्ति धर्ममार्ग से डिग चुका था। उसके सुधार के आचार्य महाराज के भाव उत्पन्न हुए। महाराज ने उस व्यक्ति को अपने पास बुलाने का विचार किया। उस पर चंद्रसागर महाराज ने कहा- "महाराज ! वह दुष्ट है। बुलाने पर वह नहीं आएगा, तो आपका अपमान होगा।"
आचार्य महाराज ने कहा- "हमारे पास मान नहीं है, तो अपमान कैसे होगा?" मान होने पर अपमान का भय उचित था।
इसके पश्चात् वह व्यक्ति महाराज के पास आया। उनके तपोमय व्यक्तित्व ने उस पापी ह्रदय पर गहरा प्रभाव डाला। महाराज के कथन को सुनकर उसने अपने जीवन में समुचित सुधार कर लिया।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रन्थ का ?
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