चोर पर करुणा - अमृत माँ जिनवाणी से - ६०
? अमृत माँ जिनवाणी से - ६० ?
"चोर पर करुणा"
आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज के गृहस्थ जीवन एक घटना पर वर्धमानसागर महाराज ने इस प्रकार प्रकाश डाला था-
"गृहस्थ अवस्था मे एक दिन महाराज, शौच के लिए खेत में गए थे, तो कि क्या देखते हैं कि हमारा ही नौकर एक गट्ठा ज्वारी चोरी कर के ले जा रहा था। उस चोर नौकर ने महाराज ने देख लिया।
महाराज की दृष्टि भी उस पर पड़ी। वे पीठ करके चुपचाप बैठ गए। उनका भाव था कि बेचारा गरीब है, इसलिए पेट भरने को ही अनाज ले जा रहा है।
उस दीन पर दया भाव होने से महाराज ने कुछ नहीं कहा, किन्तु वह चोर नौकर घर आया हमारे पास आकर बोला कि अण्णा ! भूल से मैं खेत से ज्वार लेकर जा रहा था, सातगौड़ा ने मुझे देख लिया, लेकिन कहा कुछ नहीं।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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