क्रांतिकारी धार्मिक संतराज - अमृत माँ जिनवाणी से - ५९
? अमृत माँ जिनवाणी से - ५९ ?
"क्रांतिकारी धार्मिक संतराज"
इस प्रकार शान्तिसागर जी महाराज के जीवन मे अवर्णनीय बाधाएँ, जो पिछले प्रसंगों में वर्णित की गई हैं, आती रहीं, किन्तु ये शान्तिसागर महाराज शांति के सागर ही रहे आये आये और कभी भी 'ज्वाला प्रसाद' नहीं बने।
धीरे धीरे समय बदला और लोगो को महाराज की क्रियाओं का ज्ञान हो गया। इससे विध्न की घटा दूर हो गई। इस प्रकाश में तो महाराज प्रचलित मिथ्या पृव्रत्तियों का उच्छेद करने वाले प्रचंड विद्रोही के रूप में दिखते हैं। उन जैसा सुधारक कहा मिलेगा?
आज तो संयम रूपी अमृत कलश को फोड़कर फेकने वाला और विषय विष की प्याली पीने वाला पुरुष ही मस्तक पर सुधारक के मुकुट को धारण करता है।
जो सुधार महाराज ने किया और धर्म का निर्दोष मार्ग प्रचलित कराया, उसे देख इन्हें सचमुच में इस युग के धार्मिक क्रांतिकारी महापुरुष कहना होगा।
ऐसी ही अनेक शिथिल प्रवृत्तियों में उन्होंने सुधार कर धर्म मार्ग में नवीन जीवन डाला।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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