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?जाप का क्रम - अमृत माँ जिनवाणी से - ५१


Abhishek Jain

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?    अमृत माँ जिनवाणी से - ५१    ?


                 "जाप का क्रम"


           चरित्र चक्रवर्ती ग्रंथ के लेखक दिवाकरजी, पूज्य मुनिश्री वर्धमान सागर के पास उनके दर्शनों के लिए जाया करते थे। जो गृहस्थ जीवन में आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज के बड़े भाई थे। वह ९४ वर्ष की उम्र में भी अपनी मुनि चर्या का पालन भली भांति कर रहे थे।

           वर्धमान सागरजी महाराज बिना किसी की सहायता के ही इस उम्र मे अपने केशलौंच भी शीघ्रता से कर लेते थे। उनसे प्रश्न किया गया- "महाराज ! आपके जाप का क्या क्रम रहता है?"

उत्तर- "प्रभात में १८ माला, मध्यान्ह में ५ माला, संध्या के समय ३६ माला, मध्य रात्रि में पाँच माला फेरता हूँ और अन्य समय में मै अपनी आत्मा का ध्यान करता हूँ।"

  प्रश्न- "उनके पास समय ज्ञात करने की घड़ी रखी थी। लेखक ने पूंछा- "महाराज महाराज यह घड़ी आपकी नही है, हम तो आपके हैं न?"

     उत्तर (सस्मित वदन से बोल उठे)- "आप भी हमारे हो तो हमारे साथ चलो। हमारे साथ क्यों नही रहते ? इस जगत के मध्य में यह शरीर भी मांझा नाहीं है। कोई भी पदार्थ मेरा नही है। 'अंतकाले कोणी नहीं, जासी एकला' (अंतकाल में जीव का कोई सांथी नही है, यह अकेला जायेगा)।"

              मुनिश्री वर्धमान सागर जी महाराज की इतनी अधिक उम्र में, उनकी आत्मसाधना व भाव विशुद्धि को देखकर हम सभी अनुभव करते है कि आचार्यश्री शान्तिसागरजी के बड़े भाई के रूप में जन्म लेने वाला जीव अवश्य ही उनकी भांति एक महान साधक होगा।


?  स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का  ?

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