तपश्चरण का प्रभाव - अमृत माँ जिनवाणी से - ४९
? अमृत माँ जिनवाणी से - ४९ ?
"तपश्चरण का प्रभाव"
आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज कटनी के चातुर्मास के पश्चात जबलपुर जाते समय जब बिलहरी ग्राम पहुँचे, तो वहाँ के लोग पूज्यश्री की महिमा से प्रभावित हुए। वहाँ के सभी कुँए खारे पानी के थे।
एक स्थान पर आचार्य महाराज बैठे थे। भक्त लोगो ने उसी जगह कुआँ खोदा। वहाँ बढ़िया और अगाध जल की उपलबब्धि हुई। आज भी इस गाँव के लोग इन साधुराज की तपस्या को याद करते हैं।
एक बार कटनी की जैन शिक्षण संस्था के २० फुट ऊंचे मंजले पर एक तीन वर्ष का बालक बैठा था। एक समय और बालको ने आचार्य महाराज का जयघोष किया। वह बालक भी मस्त हो महाराज की जय कहकर उछला और नीचे ईट, पत्थर के ढेर पर गिरा किन्तु कोई चोट नही आयी। सुयोग की बात थी जिस कोने पर वह गिरा, उस जगह पत्थर आदि का अभाव था। सब कहते थे- "यह आचार्य महाराज के पुण्य नाम का प्रभाव है।
कटनी में एक प्राणहीन सरीखा आम का वृक्ष था। वह फल नही देता था। एक बार उस वृक्ष के नीचे आचार्यश्री का पूजन हुआ। तब से वह डाल फल गई, जिसके नीचे वह साधुराज विराजमान थे।उस समय सभी कटनी वाशी परिचित थे।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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