दिव्य दृष्टि - अमृत माँ जिनवाणी से - ४७
? अमृत माँ जिनवाणी से - ४७ ?
"दिव्यदृष्टि"
महिसाल ग्राम के पाटील श्री मलगोंड़ा केसगोंडा आचार्य महाराज ने निकट परिचय में रहे हैं। वृद्ध पाटील महोदय ने बताया, "आचार्यश्री शान्तिसागर जी महाराज १९२२ के लगभग हमारे यहाँ पधारे थे।
उस समय उनका अपूर्व प्रभाव दिखाई पड़ता था। उनकी शांत व तपोमय मूर्ति प्रत्येक के मन को प्रभावित करती थी। उस समय की एक बात मुझे याद है।
एक दिन आचार्य ने अपने साथ में रहने वाले ब्रम्हचारी जिनगोड़ा को अकस्मात आदेश दिया कि तुम तुरंत यहाँ से समडोली चले जाओ। वे ब्रम्हचारी गुरुदेव का आदेश सुनकर ही चकित हो गए। उनका मन गुरुचरणों के निकट रहने को लालायित था। फिर भी उन्हें यही आदेश मिला कि यहाँ एक मिनिट भी बिना रुके अपने घर चले जाओ।
इस आदेश का कारण अज्ञात था। नेत्रो से अश्रुधारा बहाते हुए युक्त ब्रम्हचारी जी ने प्रस्थान किया।
जब वे समडोली पहुँचे, तो उन्हें ज्ञात हुआ कि कुछ बदमाशो के उनकी भनेजन के पति का खेत में कत्ल कर दिया है। उस समय यह बात ज्ञात हुई की महाराज के दिव्य ज्ञान में इस भविष्यत कालीन घटना का कुछ संकेत आ गया था।
ऐसे योगियो का वर्णन कौन कर सकता है? उनके दर्शन से आत्मा पवित्र होती थी।"
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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