जीवनरक्षा व एकीभाव स्त्रोत का प्रभाव - अमृत माँ जिनवाणी से - ३७
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३७ ?
"जीवनरक्षा व एकीभाव स्त्रोत का प्रभाव"
ब्रम्हचारी जिनदास समडोली वालों ने बताया कि आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज की अपार समर्थ को मैंने अपने जीवन में अनुभव किया है। उन्होंने मेरे प्राण बचाये, मुझे जीवनदान दिया, अन्यथा मैं आत्महत्या के दुष्परिणाम स्वरूप ना जाने किस योनी मे जाकर कष्ट भोगता।
बात इस प्रकार है कि मेरे पापोदय से मेरे मस्तक के मध्य भाग में कुष्ट का चिन्ह दिखाई पड़ने लगा। धीरे-२ उसने मेरे मस्तक को घेरना शुरू किया।
मेरी चिन्ता की सीमा ना थी, मेरी मनोवेदना का पार ना था। लोगो के सामने आने मे मुझे बड़ा संकोच होता था। अवर्णनीय लज्जा आती थी।
निर्दोष होते हुए भी लोग मुझे हीनाचरणवाला सोचेगें, इससे मैं मन ही मन दुखी हो रहा था।
एक दिन मैं आचार्य महाराज के चरणों में पहुँचा। आँखो से अश्रुधारा बहाते हुए मैंने अपने अंतःकरण की सारी वेदना व्यक्त कर दी। उन्होंने मुझे बड़ी हिम्मत दी और आत्मघात करने को महान पातक बता उससे मुझे रोका।
उन्होंने मुझसे कहा- "घबराओ मत तुम्हारा रोग जल्दी दूर ही जावेगा। तुम प्रभात,मध्यान्ह तथा सायंकाल के समय शुद्धतापूर्वक एकीभाव स्त्रोत का पाठ करो। तीन चार सप्ताह के बाद वह रोग दूर हो गया।
एक विशेष उल्लेखनीय बात यह थी कि मेरे मस्तक में एक छोटा सफेद दाग शेष बचा था। मैंने कहा - "महाराज, यह दाग अभी बाकी है।"
सुनकर पूज्यश्री ने अपना हाथ मस्तक पर लगाया, तत्काल ही वह सफेद दाग दूर हो गया। मैं गुरुप्रसाद से ना केवल उस रोग से मुक्त हुआ बल्कि आत्मघात की विपत्ति से बचा।
यह हाल बहुत से लोगों को मालूम हुआ। स्तवनिधि क्षेत्र मे पायसागर महाराज ने आचार्य महाराज की महत्वता पर प्रकाश डालते बताया था कि गुरुप्रसाद से ब्रम्हचारी जिनदास का यह रोग दूर हुआ था।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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