कोरा उपदेश धोबी तुल्य है - अमृत माँ जिनवाणी से - ३८
? अमृत माँ जिनवाणी से - ३८ ?
"कोरा उपदेश धोबी तुल्य है"
अपने स्वरूप को बिना जाने जो जगत को चिल्लाकर उपदेश दिया जाता है, उसके विषय मे आचार्यश्री शान्तिसागरजी महाराज ने बड़े अनुभव की बात कही थी, "जब तुम्हारे पास कुछ नही है, तब जग को तुम क्या दोगे?
भव-२ में तुमने धोबी का काम किया। दूसरों के कपड़े धोते रहे और अपने को निर्मल बनाने की और तनिक भी विचार नहीं किया।
अरे भाई ! पहले अपनी आत्मा को उपदेश दो, नाना प्रकार की मिथ्या तरंगो को अपने मन से हटाओ, फिर उपदेश दो।
केवल जगत को धोते बैठने से शुध्दि नहीं होगी। थोड़ा भी आत्मा का कल्याण कर लिया तो बहुत है।
? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ का ?
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