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राजाखेड़ा में उपसर्ग - अमृत माँ जिनवाणी से - ३११


Abhishek Jain

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जय जिनेन्द्र बंधुओं,

      
        आज जिस प्रसंग का उल्लेख करने जा रहा हूँ वह बहुत ही महत्वपूर्ण प्रसंग है। दो दिनों में इसका उल्लेख किया जायेगा। पूज्य शान्तिसागरजी महराज की अपार क्षमा का यह  बहुत बड़ा उदाहरण है। लगभग पिछले छह महीने से इस प्रसंग का उल्लेख करना चाह रहा था आज इस प्रसंग को प्रस्तुत कर पा रहा हूँ।

         यह वृत्तांत हम सभी को जानना चाहिए और अपार क्षमायुक्त दिगम्बर मुनिराज के विशाल जीवन से जन-२ को अवगत कराना चाहिए।

?   अमृत माँ जिनवाणी से - ३११   ?


             "राजाखेड़ा में उपसर्ग"


             पूज्य शान्तिसागरजी महराज अपने संघ के साथ मुरैना, धौलपुर होते हुए ६ फरवरी सन १९३० को राजाखेड़ा पहुँचा। यहाँ की धार्मिक समाज ने संघ की भव्य आगवानी की। जिनमंदिर के समीपवर्ती भवन में आचार्य महराज सप्तर्षि शिष्यों सहित ठहरे थे। उसके सामने के चबूतरे पर सब त्यागी लोग घ्यान, अध्यन, सामायिक करते थे। एक सभा मंडप पास में बनाया गया था, जहां तीन दिन तक धर्म प्रभावना हुई। कोई विध्न का लेश भी न था।

              उस समय आचार्य महराज के अंतःकरण ने बिहार करने की प्रेरणा की, किन्तु आगत अनेक पंडितों आदि के आग्रह का विचार कर उन्होंने विहार नहीं किया। चौथा दिन भी सानंद व्यतीत हो गया।

                पांचवा दिन आया। राजाखेड़ा में कुछ पापी लोग, ज़ो संकट का पहाड़ पटकने के पाप-प्रयत्न में जोर से संलग्न थे। इसी से आचार्यश्री के पवित्र अंतःकरण ने प्रस्थान करने का परामर्श किया था, किन्तु सद्भावना वश लोकनुरोध का विचार कर वे रुक गए थे।


आगे का वृतांत अगले प्रसंग में....


? स्वाध्याय चारित्र चक्रवर्ती ग्रंथ से ?
?आज की तिथी - चैत्र शुक्ल सप्तमी?

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