Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World

Saurabh Jain

Administrators
  • Posts

    357
  • Joined

  • Last visited

  • Days Won

    31

 Content Type 

Profiles

Forums

Events

Jinvani

Articles

दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

Downloads

Gallery

Blogs

Musicbox

Blog Entries posted by Saurabh Jain

  1. Saurabh Jain
    ? सभी को जय जिनेन्द्र?
       एवम् परम पूज्य गुरूदेव आचार्य श्री १०८ विद्या सागर जी महाराज का मंगल
    ✋✋✋आशीर्वाद✋✋✋
    आज का दिन मंगलमय हो ।।
    ?शास्त्रों में लिखा है हमे रोज़ एक नियम/त्याग लेना ही चाहिये । 
    ?सभी धर्मो में त्याग /नियम को बहुत महत्व दिया गया है ।
    ? त्याग / नियम कितना भी छोटा क्यों न हो (सिर्फ 10 मिनिट का भी) बहुत अशुभ कर्म नष्ट होते हैं।
    ?रोज़ कुछ त्याग करने से असंख्यात बुरे कर्मो की निर्ज़रा (क्षय) होती है
     
    ? नरक गति का बंध अगर हमारा हो चुका है तो हम किसी भी तरह  के नियम जीवन में नहीं ले पाते हैं  
    आज-    11-02-2016
      दिन-     गुरूवार
    ?"" आप चाहे तो सिर्फ आज के लिये ये त्याग/नियम भी ले सकते हैं या और कोई भी नियम अपने   अनुसार ले सकते है ।।                                                                                                                                                                                                                                   
     ?नियम ➡ आज गुलाब जामुन का त्याग !


    ?शहर में विराजित साधू संतो के दर्शन की  और निरंतराय आहार की भावना  रखे और हो सके तो दर्शन करके आहार भी दें।
    ??जय जिनेन्द्र ??
    ?जिन मंदिर  जी  जाकर  कुछ गुप्तदान जरुर  करें।?
    आप नीचे कमेंट में त्याग हे या नियम हें ऐसा लिख सकते हें 
    -Singhai Deepak Jain
  2. Saurabh Jain
    Dasakshan Parv Day 4- Uttam Shauch Dharma -- उत्तम शौच धर्म (Contentment or Purity) - To keep the body, mind and speech pure by discarding greed.

    Accoding greed and abstaining from possessive longing is called Shauch or purity of thought. The longings that should be got rid off are of 4 different kinds. They are:
      1. Jivana Lobha – longing to sustain one’s living.
      2. Aroygaya Lobha – longing to sustain one’s health.
      3.Upabhoga Lobha longing to enjoy things, which will be useful to contribute to general happiness.
    Each objects will be of two kinds; one pertaining to the self and the one pertains to others. Getting rid of these 8 different types of longing is called Shauch or purity.
     
    Happy Uttam Shauch Dharma !!
  3. Saurabh Jain
    DasLakshan Parv day 1- • Uttam Kshama Dharma -- उत्तम क्षमा धर्मं (Supreme Forgiveness) - To observe tolerance whole-heartedly, shunning anger.

    In the life of an ascetic, he may find himself in circumstances, likely to arouse his wrath. Inspite of such provocation, he must avoid emotional disturbance and maintain peace of mind. This maintaining patience in the midst of provocation is called Kashama or forbearance. Provocation circumstances may occur in this way. Homeless saint must his body for the achievement of his spiritual goal. For this, he must obtain food from the householders. Therefore he must come out of his solitude and enter a town or a village where he may get food. He may have to pass through streets where he may come across with an unsympathetic crowd. At the sight of an ascetic, the mischievous crowd may indulge in ridicule and abuse. They may even assault him. In spite of all these insults and ill treatment, the saint should not exhibit any unfavorable reaction. He should maintain patience. He should consider all these insults and ill treatment as a result of ignorance. With the nobility of thought, he should forgive the mischief-makers. Such a mental attitude of the saint is called the noble forbearance or Uttama Kshama.
     
    Happy Uttam Kshama Dharma !!!! 
  4. Saurabh Jain
    DasLakshan Parv day 2 Uttam Mardava Dharma -- उत्तम मार्दव धर्म (Tenderness or Humility) - To observe the virtue of humility subduing vanity and passions.
    Mardava: This refers to the complete absence of self-conceit. Such self-conceit or pride may be due to one’s own superior caste, one’s family prestige, one’s own bodily beauty, learining, wealth, courage and bodily strength. Due to these various reasons, a person may entertain the feeling of self-importance and pride. Whenever a man with such pride is insulted by other persons, he may lose his temper and start abusing with disrespectful words or conduct. Even an ascetic may get offended and lose his control of mind in such circumstances. But he will become a victim of pride and self-conceit. Complete avoidance of this feeling of pride is called Mardhavam or humility.
     
    Happy Uttam Mardava Dharma !!
  5. Saurabh Jain
    DasLakshan Parv day 7- Uttam Tap Dharma -- उत्तम तप धर्म (Penance or Austerities) - To practice austerities putting a check on all worldly allurements.
     
    Shloka:
    तप चाहें सुरराय, करम-शिखर को वज्र है ।
    द्वादशविधि सुखदाय, क्यों न करै निज सकति सम ॥
    उत्तम तप सबमाहिं बखाना, करम शैल को वज्र-समाना ।
    बस्यो अनादि-निगोद मन्झारा, भू-विकलत्रय-पशु-तन धारा ।
    धारा मनुज तन महादुर्लभ, सुकुल आयु निरोगता ।
    श्रीजैनवानी तत्वग्यानी, भई विषय-पयोगता ।।
    अति महादुर्लभ त्याग विषय, कषाय जो तप आदरैं ।
    नर-भव अनूपम कनक घर पर मणिमयी कलसा धरैं ॥

    Meaning:
    Even the king of Devtaas wish to achieve supreme austerity as it is like a Vajraa (a weapon) to break the mountain of the Karma. This supreme Austerity has twelve types. And since this Austerity brings uncomparable happiness to life then why shouldn’t we all practise and achieve this supreme austerity.
    In all the works Tap(Austerity) has been called the best as it acts like a weapon which could demolish even the mountain of Karma.
    In the beginning we were in the Nigoda and faced lot of pains, somehow we got through it and took birth in 2,3,4 sensed body and also among 5 sensed animals. After going thorugh all the pains and suffering in all these bodies by great luck we have got birth in the human body which is extremely rare. We have also got good society and long life as well as good health. Apart from all these we have found the extremely important thing in form of Jinvaani (Holy books) and also the capability to understand them. We also by fortune have the interest to understand the reality.
    If we could leave all the raag, vishay and kashaay and achieve the supreme austerity, it would be like putting a crown of diamond over the golden house !!
     
    Happy Uttam Tap Dharma !!
  6. Saurabh Jain
    DasLaskhan Parava - Day 3 - Uttam Aarjava Dharma --- उत्तम आर्जव धर्म (Straight-forwardness or Honesty) - To practice a deceit-free conduct in life by vanquishing the passion of deception.
    Aarjava means straightforwardness in conduct. One’s own conduct may be crooked. His bodily action, speech and mind may be lacking in straightforwardness. Avoiding this crookedness in thought, word and deed, is called Aarjavam or uprightness in conduct
    Happy Uttam Aarjava Dharma !!!
  7. Saurabh Jain
    निम्न बिन्दुओं पर समस्त समाज ध्यान दें-
    1. 24 अगस्त को सकल जैन समाज अपने आॅफिस/प्रतिष्ठान/स्कूल व काॅलेज की छृट्टी/बंद रखे।
    2. 24 अगस्त को माननीय प्रधानमंत्री, राज्यपाल, मुख्यमंत्री, कलेक्टर, एसडीएम, तहसीलदार के नाम का ज्ञापन सौपेंगे।
    3. 24 अगस्त को समाज का प्रत्येक व्यक्ति महिला, पुरूष, बच्चे सभी एकसाथ प्रदर्शन जुलूस में सम्मिलित होंगे।
    4. 24 अगस्त को बन्द करने के लिए व्यापारी वर्ग, राजनेताओं और विभिन्न संगठनों से अपील करेंगे कि वह जैन धर्म के विपत्ति के समय उनका सहयोग करें एवं बद में साथ दें।
    5. प्रदर्शन जुलूस आंदोलन स्थल से प्रारंा होकर तहसील/कलेक्ट्रेट में ज्ञापन देकर समाप्त होगा।
    6. ज्ञापन ‘धर्म बचाओं आंदोलन’ के बैनर तले सौंपा जायेगा।
    7. जैन बंधुओं के प्रतिष्ठानों में 19 अगस्त तक यह बैनर लगा दिये जायेंगे कि 24 अगस्त को सल्लेखना/संथारा के विरोध में दुकाने/प्रतिष्ठान बंद रहेंगे।
    8. शहर के मुख्य चैराहा, बिल्डिंगों में ‘धर्म बचाओं आंदोलन’ के फ्लैक्स लगा दिये जायेंगे।
    9. 24 अगस्त के बन्द का सोशल मीडिया/प्रिन्ट मीडिया/इलेक्ट्रोनिक मीडिया में जमकर प्रचार-प्रसार किया जायें।
    10. 24 अगस्त को कोई भी जैन समाज का बन्धु शहर से बाहर नहीं जायेगा, सभी एक साथ ज्ञापन सौंपने जायेंगे।
    11. स्कूल/काॅले के विद्यार्थी और सरकारी कर्मचारी 22 अगस्त या उससे पहले ही छुट्टी के लिये आवेदन देकर आयंगे जिसमें नहीं आने का कारण ‘‘जैन धर्म पर संकट निवारणार्थ धर्म बचाओं आंदोलन’’ में सम्मिलित होने के लिये स्पष्ट लिखा जायेगा।
    12. 24 अगस्त को कोई भी व्यक्ति किसी भी बैंक में न पैसा जमा करेंगा न निकाले जायेंगे।
    13. पुरूष वर्ग सफेद वस्त्र और महिलायें केशरिया परिधान में चलेंगे हाथ में काली पट्टी बांधकर।

     
  8. Saurabh Jain
    नीलगगन में एक सितारा,
    समाधि मरण धर्म हमारा !
    महावीर की प्यारी वाणी,
    समधि मरण करे हर प्राणी !
    उपवास हमारा नाश्ता है,
    समाधि मरण में आस्था है !
    समाधि मरण की हे अभिलाषा,
    न्याय मिले बस हे एक आशा !
    अंतिम चरण समाधि मरण,
    मोक्षधाम को मिले शरण !
    समाधिमरण प्यारा है,
    ऋषि-मुनियोँ का नारा है !
  9. Saurabh Jain
    सल्लेखना क्या है?--

    जैन साधना का प्राण है सल्लेखना 
    मुनिश्री १०८ प्रमाणसागर जी महाराज 
    सल्लेखना जैन साधना का प्राण है. सल्लेखना के अभाव में जैन साधक की साधना सफल नहीं हो पाती. जिस प्रकार वर्षभर पढ़ाई करने वाला विद्यार्थी यदि ठीक परीक्षा के समय विद्यालय न जाये तो उसकी वर्षभर की पढ़ाई निरर्थक हो जाती है, उसी तरह पूरे जीवनभर साधना करने वाला साधक यदि अंत समय में सल्लेखना /संथारा धारण न कर सके तो उसकी साधना निष्फल हो जाती है. सल्लेखना का फल बताते हुए जैन शास्त्रों में लिखा गया है कि यदि कोई भी व्यक्ति निर्दोष रीति से सल्लेखना धारण करे तो वह उसी भव में (चरमशरीरी होने पर) मोक्ष को पा सकता है. मध्यम रीति से सल्लेखना करने वाला साधक तीसरे भव में और जघन्य (साधारण) रीति से सल्लेखना करने वाले मुनि अथवा गृहस्थ सात अथवा आठ भव में निश्चयतः मुक्ति को पा लेते हैं. यही कारण है कि प्रत्येक जैन साधक अपने मन में सदैव यही भावना भाता है कि उसके जीवन का अंत सल्लेखना पूर्वक हो, वह सल्लेखना पूर्वक ही जीवन का अंत करना चाहता है. उसकी आन्तरिक भावना यही होती है कि मैं सल्लेखना के साथ ही जीवन की अंतिम श्वास लूँ.
    सल्लेखना का अर्थ :
    “सल्लेखना” शब्द सत् + लेखन से बना है. जिसमें सत् का अर्थ है अच्छी तरह से, भली प्रकार से, समीचीन प्रकार से एवं “लेखन” का यहाँ अर्थ है कृष करना अथवा क्षीण करना. अपनी काया एवं कषायों को सम्यक प्रकार से कृष करना सल्लेखना कहलाता है. अर्थात् प्रत्येक साधक को अपनी कषायों/विकारों के शमन के साथ शरीर को कृष करना चाहिए. यहाँ शरीर को कृष करने का अर्थ अनावश्यक रूप से सुखाना नहीं है अपितु अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को कम करते हुए शरीर का शोधन करना है . कुल मिलाकर, अपने विकारों के शमन और शरीर के शोधनपूर्वक आत्मजागृति के साथ जीवन की अंतिम श्वास लेना, सल्लेखना कहलाती है.
    सल्लेखना क्यों? 
    जिसने जन्म लिया है उसका मरण भी सुनिश्चित है. तरह तरह के औषध उपचार अथवा मन्त्र तंत्र भी मनुष्य को मरने से बचा नहीं सकते हैं. “जातस्य मरणं ध्रुवं, ध्रुवं जन्म मृतस्य च” जन्म लेने वाले का मरण और मरने वाले का जन्म निश्चित है. इस उक्ति के अनुसार मृत्युकाल सन्निकट आने पर मृत्यु से घबराने के स्थान पर उस जीवन का अनिवार्य/ अटल सत्य मानकार आत्मजागृति के साथ वीरतापूर्वक जीवन को संपन्न करना ही सल्लेखना का उद्देश्य है. जैन साधना भेद विज्ञान मूलक है यहाँ भेद विज्ञान का अर्थ है ऐसा विज्ञान जो मनुष्य को आत्मा और शरीर के अलग-२ होने के सत्य को उजागर करे. शरीर और आत्मा की भिन्नता के अहसास के साथ अपनी आत्मा का शोधन करना ही जैन साधक का परम लक्ष्य होता है. अंतःकरण में वैराग्य और भेद विज्ञान के साथ किया गया तपानुष्ठान आत्मा के कल्याण का मुख्य कारण है , तपस्या से ही आत्मा में निखार आता है. सल्लेखना भी एक प्रकार की विशिष्ट तपस्या है.
    सल्लेखना कब और किसे?
    जैन शास्त्रों में कहा गया है कि साधक को अपने शरीर के माध्यम से सतत साधना करते रहना चाहिए, जब तक शरीर साधना के अनुकूल प्रतीत हो शरीर को पर्याप्त पोषण देते रहना चाहिए परन्तु जब शरीर में शिथिलता आने लगे व हमारी साधना में बाधक प्रतीक होने लगे, बुढ़ापे के कारण शरीर अत्यंत क्षीण, जर्जर हो जाए अथवा ऐसा कोई रोग हो जाए जिसका कोई उपचार न हो, उसकी चिकित्सा न की जा सके तो उस घड़ी में शरीर की नश्वरता एवं आत्मा की अमरता को जानकर धर्म ध्यान पूर्वक इस देह का त्याग करना सल्लेखना कहा जाता है. महान जैन ग्रन्थ ‘रत्नकरंडक श्रावकाचार’ में कहा भी गया है:
    “उपसर्गे दुर्भिक्षे जरसि रुजायां च नि:प्रतीकारे 
    धर्माय तनु विमोचन माहु सल्लेखनामार्या" 
    अर्थात् ऐसा उपसर्ग जिसमें बचने की संभावना न हो, अत्यधिक बुढ़ापा और ऐसा असाध्य रोग हो जाए जिसका कोई इलाज संभव न हो तब धर्म रक्षा के लिए अपने शरीर के त्याग को सल्लेखना कहते हैं. उक्त कथन से यह स्पष्ट है कि हर किसी को या जब कभी भी सल्लेखना करने की अनुमति नहीं है. जब शरीर हमारी साधना में साथ देने योग्य ना हो अथवा उसे सम्भाल पाना सम्भव ना हो तब सल्लेखना ग्रहण की जाती है.
    सल्लेखना की विधि:
    सल्लेखना का यह अर्थ नहीं है कि एकसाथ सभी प्रकार के भोजन एवं पानी तो त्याग करके बैठ जाना. अपितु सल्लेखना की एक विधि है. इस प्रक्रिया के अनुसार साधक अपनी कषायों को कृष करने के क्रम में अपने मन को शोक, भय, अवसाद, स्नेह, बैर, राग द्वेष और मोह जैसे विकारी भावों का भेद विज्ञान के बल पर शमन करता है . और अपनी साधना के द्वारा अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को कम करता जाता है. वैसे अंत समय में जब हमारे शरीर में शिथिलता आ जाती है, शरीर के अंग काम करना बंद कर देते हैं, व्यक्ति का खाना पीना भी छूट जाता है. साधक अपने शरीर को कृष करने के क्रम में सबसे पहले अपनी शारीरिक आवश्यकताओं को कम करते हुए क्रमशः स्थूल आहार जैसे दाल-भात, रोटी आदि का त्याग करता है, उसके बाद केवल पेय पदार्थों का सेवन करता है. फिर धीरे-धीरे अन्य पेय पदार्थों को कम करते हुए मात्र जल लेता है, शक्ति अनुसार बीच बीच में उपवास भी करता है और अत्यंत सहज और शांत भावों से इस संसार से विदा लेता है.
    सल्लेखना आत्महत्या नहीं है:
    देह विसर्जन की इतनी तर्कसंगत एवं वैज्ञानिक पद्धति को आत्महत्या कहना अथवा इच्छामृत्यु या सतीप्रथा निरुपित करना बड़ा आश्चर्यजनक है यदि जैन धर्म में प्रतिपादित ‘सल्लेखना’ की मूल अवधारणा को ठीक ढंग से समझा गया होता तो ऐसा कभी नहीं होता. जैन धर्म में आत्महत्या को घोर पाप निरुपित करते हुए कहा गया है ‘आत्मघातं महत्पापं’. हत्या ‘स्व’ की हो अथवा ‘पर’ की हो हत्या तो हत्या है. जैन धर्म में ऐसी हत्या को कोई स्थान नहीं है. इस साधना अथवा सल्लेखना के लिए आत्महत्या जैसे शब्द का प्रयोग तो तब किया जा सकता है जब यह मरने के लिए की जाए. जबकि सल्लेखना मरने के लिए नहीं जीवन-मरण से ऊपर उठने के लिए की जाती है. सल्लेखना के पाँच अतिचारों से यह बात एकदम स्पष्ट हो जाती है:
    “जीवितमरणाशंसा शंसामित्रनुराग सुखानुबंध निदानानि”
    उक्त सूत्र में “ जीवितआशंसा” अर्थात् जीने की इच्छा तथा “मरणाशंसा” अर्थात् मरने की इच्छा को सल्लेखना का अतिचार/दोष कहा गया है. ऐसी सल्लेखना की पावन प्रक्रिया को आत्महत्या कहना कितना आश्चर्यजनक है. वस्तुतः सल्लेखना आत्महत्या नहीं आत्मलीनता है, जिसमें साधक आत्मा की विशुद्धि एवं शरीर की शुद्धि के साथ अपनी अंतिम साँस लेता है. सल्लेखना एवं आत्महत्या दोनों को कभी एक नहीं कहा जा सकता है. दोनों की मानसिकता में महान अंतर है:
    सल्लेखनाआत्महत्यासल्लेखना धर्म हैआत्महत्या अपराध है, पाप हैसमता से प्रेरित होकर ली जाती हैकषाय से प्रेरित होकर ली जाती हैपरम प्रीति और उत्साहपूर्वकतीव्र मानसिक असंतुलन, घोर हताशा और अवसादग्रस्त स्थिति मेंलक्ष्य जीवन मरण से ऊपर उठाना हैलक्ष्य केवल मरना हैआत्मा की अमरता , शरीर की नश्वरता को समझकर आत्मोद्धार के लिएदेह विनाश को अपना नाश मानकर की जाती हैजीवन के अंतिम समय मेंजीवन में कभी भी की जा सकती हैसल्लेखना मोक्ष का कारण बनती हैआत्महत्या नरक का द्वार खोलती हैसल्लेखना को सतीप्रथा से जोड़ना तो और भी हास्यास्पद है क्योंकि सतीप्रथा (जो क़ानूनी रूप से प्रतिबंधित है) एक कुप्रथा थी जबकि सल्लेखना एक व्रत है. सल्लेखना जन्म-मरण से ऊपर उठने के लिए की जाती है जबकि सतीप्रथा में स्त्री को पति की मृत देह को अपनी गोद में लेकर चिता पर जलना पड़ता है. इसके पीछे एक ही धारणा है उस स्त्री को अगले जन्म में वही व्यक्ति पति के रूप में प्राप्त हो. इस प्रकार पति के राग और वासना की चाह में अपने जीवन की आहुति देना जैनधर्म में सर्वथा अस्वीकृत है इसलिए सतीप्रथा को सल्लेखना से जोड़ना सर्वथा अनुचित है.
    जैन समाज इतना उद्वेलित क्यों : 
    जिसके प्राणों पर संकट आ जाएँ, वह उद्वेलित नहीं होगा तो क्या होगा? जिस सल्लेखना के कारण हमारी साधना सफल होती है जिसको धारण करने की भावना हर जैन साधक जीवनभर रखता है यदि उसपर ही प्रतिबन्ध की बात आ जाए तो समाज उद्वेलित होगा ही. वस्तुतः सल्लेखना पर रोक हमारे धर्म पर रोक है. हमारी साधना पर रोक है. यह जैनधर्म और संस्कृति पर कुठाराघात है. जैन समाज का उद्वेलित होना स्वाभाविक है जिसे इस प्रतिबन्ध को हटाकर ही शांत किया जा सकता है . अंत में, मैं शासन-प्रशासन, विधिवेत्ताओं एवं न्यायविदों से यही कहना चाहूँगा किसी भी धर्म से संबंधित किसी भी साधना पद्धति अथवा परम्परा से सम्बद्ध कोई भी निर्णय उसकी मूल भावना को समझकर ही लिया जाए. अनादिकाल से चली आ रही सल्लेखना की पुरातन परंपरा को यथावत रखा जाए.
     

    जैन साधना का प्राण है सल्लेखना
  10. Saurabh Jain
    जैन समाज  की संथारा/सल्लेखना प्रथा पर रोक लगाते राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले पर  सुप्रीम कोर्ट ने फैसला सुनाते हुए स्टे लगा दिया। यह संभव हुआ आप सभी के प्रयासो से, णमोकार मंत्र के जाप से, और आप सभी के मौन जुलूस मे उपस्तिथि से.
    सभी को धन्यवाद एवं हार्दिक शुभकामनाए.

×
×
  • Create New...