मनुष्य के जीवन का मूल सुख और शांति है जो अहिंसा पर आधारित है वास्तव में हिंसा के विचार , हिंसा के वचन , हिंसा के प्रयत्न न करना अहिंसा है ।
अहिंसा एवं सत्य एक दूसरे के पूरक हैं । अहिंसा का आयतन अनुकंपा गुण है।
अहिंसा से ही स्व-पर कल्याण संभव है।
यह धर्म है अहिंसा घारो ,ह्रदय से बढ़ के ।
जीता स्वयं को जिसने, जिन शब्द कह रहा है ।।
माने जो ऐसे जिनको, सच जैन वह रहा है ।
सच्चे बनोगे जैनी ,जिनवर के पथ पै चल के ।।
तरुवर के धर्म जैसा ,उपकार सबका करना ।
सब में छिपी अहिंसा ,जिओ जिलाओ मिलके ।।
यदि हो अहिंसा प्रेमी, स्वागत करो दिवस का ।
दिन में ही लो बाराती , दिन में हो भोज सबका ।।
बन जाओ श्रेष्ठ मानव , कुरीतियां कुचल के ।
यह धर्म है अहिंसा धारो हृदय से बढ़ के ।।
अहिंसा परमो धर्म: