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दस लक्षण पर्व ऑनलाइन महोत्सव

शांति पथ प्रदर्शन (जिनेंद्र वर्णी)

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  1. 👉राशन तो आठ -दस दिनों का सबने कोशिश करके घर मे रख ही लिया होगा। वैसे भी प्रोविजनल स्टोर्स तो खुले ही हैं , सामान भी देर सवेर मिल ही जायेगा क्योंकि भगवान की दया से हम सब इतने सम्पन तो हैं ही। 

    पर एक प्रार्थना है " अगर आप रोज़ दो सब्जी बनाते हैं तो अब एक बनाइये., दाल हो सके तो थोड़ी पतली रखिये। कोशिश कीजिये चावल का एक दाना भी व्यर्थ ना जावे। हो सकें तो जितना ज़रूरत है उतना पकायें और अगर फिर भी बच जाए तो पहले उस बचे हुए खाने को खाये और ईश्वर को धन्यवाद दें किे कम से कम मिल तो  रहा है....
     
    सीमित खाये ,संयमित रहिये 

    हिन्दू धर्म तथा देशहित के लिए महाराणा प्रताप को घास की रोटियां तक खानी पडी लेकिन वे चट्टान की भांति दुश्मन के सामने अडे रहे।

    * घर पर हैं तो हर घण्टे ये मत पूछिए सुनो ! कुछ खाने को है क्या 🙈  समय से खाइये , कम खाइये 🙏

    क्योंकि माना आपके पास पैसा है आप खरीद सकते हैं  आप छ: महीने तक का राशन स्टोर कर सकते हैं पर देश के पास संसाधन सीमित हैं।

    ऐसा ना हो हम सब कुछ अपने घरों में इकट्ठा कर लें और कुछ  लोगो को और ज्यादा मुश्किल हो जाये 
    अपने बारे में सोचिये, पर दूसरों का भीे ख्याल रखिये।  

    👉परीक्षा का समय है उम्मीद है कि हम सब अच्छे अंकों के साथ इस परीक्षा में उत्तीण होंगे 🙏

    कुछ सिखाकर ये दौर भी गुजर जायेगा
    फिर एक बार हर इंसान मुस्कुराएगा...
    मायूस न होना मेरे दोस्तों इस बुरे वक़्त से,
    कल, आज है और आज, कल हो जाएगा।

    🙏🏻🙏🏻 सबका मंगल हो 🙏🏻🙏🏻🌷
    पूजा जैन सिरोंज

  2. भूख लगने पर भोजन करना प्रकृति  हैं , भूख न होने पर भोजन करना विकृति हैं, खुद भूखे रह कर दूसरों को भोजन  कराना संस्कृति हैं |
    आज जब भारत सहित पूरा विश्व इस भयावही त्रासदी आपदा से ग्रस्त हैं तब *अहिंसा मयी भारतीय संस्कृति हमें आवाज़ दे रही हैं पीड़ित मानव सेवा हेतु*
    जब लॉक डाउन हैं और हमारा मानसिक श्रम व शारीरिक श्रम अपेक्षाकृत कम हैं तब हमें विवेक से कार्य करना हैं, जब खूब भूख लगे तब ही भोजन करें व जब कुछ भूख बचे तब भोजन करना बंद कर देना, इससे स्वास्थ्य  भी ठीक रहेगा व व्यर्थ के अपव्यव अनर्थदंड से बचे रहेंगे | साधारण हल्का भोजन का पाचन अच्छी तरह हो जाता हैं और हम व्यर्थ की परेशानी से बच जायेंगे |  बार बार  खाने पीने की आदत से बचना ही सेहत को बचाना हैं | और इन विपरीत परिस्थिति में उस बचत अन्न सामग्री को परोपकार में लगाकर पुण्य अर्जन कर सकते हैं |  स्वयं का औषधि खर्च, धन अनाज व समय को बचाकर पीड़ित मानव सेवा व देश हित में सहभागी बन सकते हैं (वने )  इन्हीं भावना के साथ 

    ॐ शांति 

  3. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, सूखी सेवनिया भोपाल 

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  4. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, जैन नगर, लालघाटी भोपाल 

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  5. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, सीमंधर भगवान, लालवानी प्रेस भोपाल 

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  6. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, अयोध्या नगर भोपाल 

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  7. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, हबीबगंज भोपाल 

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  8. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, जवाहर चौक भोपाल 

     

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  9. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, समसगढ़ भोपाल 

     

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  10. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, भोजपुर भोपाल 

     

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  11. श्री दिगम्बर जैन मंदिर, कुराना भोपाल 

     

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  12. श्री तारण तारण चैत्यालय, मंगलवारा भोपाल 

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  13. श्री नेमिनाथ दि जैन मंदिर झिरनों भोपाल 

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  14. श्री दि जैन मंदिर अहिंसा बिहार भोपाल 

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  15. श्री दि जैन मंदिर मीनाल रेसीडेन्सी भोपाल 

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  16. श्री दिगम्बर जैन मंदिर लेक सिटी भोपाल 

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  17. प्रो. (डॉ.) कमलचन्द सोगाणी

    यह सर्वविदित है कि प्राकृत भाषा जैनधर्म-दर्शन और आगम की मूल भाषा है। यही तो महावीर की वाणी है जो लोक भाषा प्राकृत में गुम्फित है. रचित है और प्रवाहित है। जैन तत्वज्ञान के जिज्ञासु को प्राकृत भाषा के ज्ञान के बिना आगम का प्रामाणिक ज्ञान मिलना संभव नहीं है।

    जैन विद्वानों को तो जैनधर्म-दर्शन-आगम को सम्यक रूप से हृदयंगम करने के लिए प्राकृत भाषा में पारंगत होना ही चाहिये। हर्ष का विषय है कि आज विद्यार्थी व विद्वान विभिन्न कारणों से संस्कृत व अंग्रेजी तो पढ़ ही रहे हैं, परन्तु खेद है कि उनकी प्राकृत पढ़ने में रुचि नहीं है। यह बहुत चिंताजनक स्थिति है।

    kc sogani.jpgयह कहना समीचीन है कि विद्यार्थी व विद्वान अंग्रेजी व संस्कृत में तो निष्णात बने ही किन्तु उन्हें तीर्थंकर महावीर की भाषा प्राकृत को नहीं छोड़ना चाहिये। यहाँ यह ध्यान देने योग्य है कि जिन लोगों को अंग्रेजी व संस्कृत का ज्ञान नहीं है वे प्राकृत जैसी सरल लोक-भाषा को सफलतापूर्वक पढ़ सकते हैं। अब तो प्राकृत पढ़ाने की ऐसी पद्धति विकसित कर ली गई है जिससे कोई भी जिज्ञासु हिन्दी व अंग्रेजी के माध्यम से प्राकृत सीख सकता है। अतः उनको अवसर मिलने पर प्राकृत पढ़ना नहीं भूलना चाहिये। ऐसे अधिक से अधिक लोगों को प्राकृत पढ़नी चाहिये। अवसर को छोड़ना प्राकृत पढ़नवालों की संख्या कम करना है। इससे संस्कृति की रक्षा में अवरोध पैदा करना है।

    इस तरह संस्कृत और अंग्रेजी जाननेवाले और नहीं जाननेवाले इन दोनों प्रकार के लोगों को प्राकृत नई पद्धति से पढ़ने से ही प्राकृत का ज्ञान कम समय में हो सकता है। यदि वे प्राकृत पढ़ना छोड़ देंगे तो वह दिन दूर नहीं है कि जब हमारे समस्त मूल आगम ग्रन्थ अनुपयोगी हो जायेंगे और हम ही उनकी रक्षा करना व्यर्थ व बोझिल समझने लगेंगे, जैसे आज हमारे बच्चे पाण्डुलिपियों की रक्षा करने को व्यर्थ एवं बोझिल समझते हैं।

    आश्चर्य है कि हम कषायपाहुड तथा षट्खंडागम. आचारांग व दशवैकालिक को तो पढ़ना-समझना चाहते है, पर उनकी भाषा के प्रति उदासीन हैं। बताइये कैसे कार्य सिद्ध होगा? कैसे उन महान आचार्यों के प्रति भक्ति होगी? कैसे प्रवचन-भक्ति और श्रुत-भक्ति होगी?

    क्या यह धारणा युक्तिसंगत नहीं है कि आगम की भाषा प्राकृत को पढ़ना-पढ़ाना महावीर की भक्ति है? यदि श्रमण महावीर के अनुयायी महावीर की भाषा के महत्त्व को नहीं समझते हैं तो अनुयायी होने का क्या अर्थ है? क्या इससे श्रमण संस्कृति का आधार नहीं डगमगायेगा?

    अतः यदि हम प्राकृत भाषा के अध्ययन-अध्यापन को महत्त्वपूर्ण माने तो महावीर वाणी बचेगी। जब प्राकृत भाषा अध्ययन के अभाव में लुप्त होगी तो समूची जैन संस्कृति ही लुप्त हो जोयेगी। न केवल जैन संस्कृति, समूची भारतीय संस्कृति की बड़ी हानि होगी।

    प्राकृत साहित्य बहुत विशाल है, उसका क्या होगा? प्राकृत के प्रति अनभिज्ञता से उसका साहित्य किसी म्यूजियम को ही सुशोभित करेगा किन्तु संस्कृति को नहीं। प्राकृत विज्ञ होने से ही महावीर की संस्कृति बचेगी अन्यथा नहीं। सामान्य जन के लिए प्राकृत विज्ञ ही लोकभाषा हिन्दी व अंग्रेजी अनुवाद के माध्यम से मूल तक पहुँचाने में सहायक होता है और प्राकृत पढ़ने की प्रेरणा देता है।

    ध्यान रहे प्राकृत भाषा का विस्मरण जैन संस्कृति का विस्मरण है, उसके सारगर्भित अस्तित्व का मिटना है। इतना ही नहीं प्राकृत भाषा के अभाव में जैन संस्कृति के विशिष्ट एवं विलक्षण मूल्यों से भारत ही नहीं विश्व समुदाय वंचित हो जायेगा।

    अतः समाज व राज्य प्राकृत भाषा को पढ़ने के लिये प्रोत्साहित करें। आवश्यक व्यवस्था करें। उसके बिना संस्कृति, तीर्थ, कला आदि कुछ भी सुरक्षित नहीं रह सकेगा। प्राकृत भाषा के संवर्धन से यह सब सहज ही प्राप्त हो जायेगा। इस पर गम्भीरता से ध्यान देने की आवश्यकता है। (डॉ. वीरसागर जैन, दिल्ली ने मुझे इस विषय पर लिखने को प्रेरित किया इसके लिए मैं उनका आभारी हूँ)।

    पूर्व प्रोफेसर दर्शन शास्त्र, दर्शन शास्त्र विभाग सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर

    एवं निदेशक अपभ्रंश साहित्य अकादमी एवं पुस्तकालय 5-6, संस्थानिक क्षेत्र (इन्स्टीट्यूशनल एरिया)

    गुरुनानक पथ, हरिमार्ग

    मालवीय नगर, जयपुर - 302017

    मोबाइल नं. 9413417690

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  18. भजन

    लेखक   ऐलक सिद्धांत सागर जी महाराज
       
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    भजन- 

    गर्व से कहो कि हम जैन हैं 
    धर्म को बचाने हम बेचैन हैं!

    जीने का अधिकार सबको जैन की आवाज है!
          सत्य अहिंसा ही  जैन धर्म का साजहै!
         अनेकांत ही तो जैन दृष्टि नैन है!
          
      गर्व से कहो कि हम जैन हैं!
                        2
    जैनियों का योगदान आजादी की जंग में 
    जैन जन साथ रहा आपदा प्रसंग में
    उच्च सोच राष्ट्रवादी एकमात्र जैन है
      . गर्व से कहो कि हम जैन हैं
                       3
    भारतीय संस्कृति जैनियों का प्राण है
    वीतरागगी साधना जैन की पहचान है 
    क्रांतिकारी और शहीद हुए कितने जैन है
       गर्व से कहो कि हम जैन है 
       धर्म को बचाने हम बेचैन है
                                                      
                     
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  19. *दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथों की प्रदर्शनी*

     *उद्घाटन समय* 

    प्रातः 9:00 बजे

    *सुगंध दशमी व अनंत चतुर्दशी के पावन अवसर पर मंदिर जी प्रांगण में दुर्लभ हस्तलिखित ग्रंथों की प्रदर्शनी आयोजित की जा रही है इसमें सचित्र दुर्लभ ग्रंथों, मानचित्रों, कुण्डलाकार (रोलनुमा) का प्रदर्शन पहली बार हो रहा है।*

    *पर्यूषण के पावन पर्व पर  ऐतिहासिक एवं दुर्लभ साक्षात् जिनवाणी का दर्शन कर धर्म लाभ लेवें।*

    *दिनांक* 8 व 12 सितंबर

    *स्थान* श्री दिगंबर जैन मंदिर यति यशोदानंद जी चौड़ा रास्ता, जयपुर

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  20. सुगंध दशमी पर्व पर विभिन्न जैन मंदिरों में भव्य झांकियों का आयोजन रविवार दिनांक 8 सितंबर 2019 को किया गया है। जिनकी जानकारी नीचे दी जा रही है। आप सभी से निवेदन है कि समय निकालकर इनके अवलोकनार्थ पधारें

    🚩 गणेश मार्ग, बापू नगर : *शाश्वत तीर्थराज श्री सम्मेदशिखर जी वंदना*

    🚩 कीर्ति नगर, टोंक रोड : *चंद्रगुप्त मौर्य के अद्भुत 16 सपने आज हो रहे सच* 

    🚩 महावीर नगर, टोंक रोड : *शिरपुर वाले अंतरिक्ष पारसनाथ* (सजीव झांकी)

    🚩 S.F.S., मानसरोवर : *सिद्ध क्षेत्र श्री बावन गजा जी (बड़वानी)*

    🚩 थड़ी मार्केट, मानसरोवर : *"काल चक्र की महिमा“*    (सजीव झांकी)

    🚩 राधा निकुंज, मानसरोवर : *सिद्ध क्षेत्र श्री बावन गजा जी (बड़वानी)*

    🚩 कृष्णा मार्ग, श्याम नगर, सोडाला : *"निगोद से सिद्धयालय तक"* (सजीव झांकी)

    🚩 राधा विहार, न्यू सांगानेर रोड, सोडाला : *महिमा भक्तामर की*

    🚩 मोहनबाड़ी, सूरजपोल : *नेमी का वैराग्य*

    🚩 तारानगर, जगतपुरा (NRI  सर्किल के पास) : *कमठ का उपसर्ग*

    🚩जवाहर नगर   अष्टापद 

    🙏निवेदन 🙏

  21. My prayer

    He, who has subdued his passions and desires, who has realized the secret of Universe in entirety;

    Who has discovered upon the teaching of Right Path of liberation for the benefit of all in a quite unselfish manner;

    Who is variously termed Budha, Mahavir, Jina, Hari, Hara, Brahma and self;

    In Him, imbued with deep devotion, may this mind (of mine) eternally dwell !

     

    Those who have no longing left for sense produced pleasure;

    Who are rich in quality of equanimity;

    Who are day and night engaged in encompassing the good of all-their own as well as of others;

    Who undergo the severe penance of self-effacement without finding-such Enlightened Saints, verily, conquer the pain and misery of mundane existence !

     

    May I always associate with with such aforesaid Holy men;

    May my mind be constantly occupied with their  contemplation;

    May the longing of my heart be always to tread in their footsteps;

    May I also never cause pain to any living being;

    May I never utter untruth; and

    May I never covet the wealth or wife of another!

    May I ever drink the nectar of contentment !

     

    With pride may I never be elated, angry may I feel with none;

    The sight of another's luck may not make me envious with his lot;

    May my desire be ever for dealings fair and straight, and may my heart only delight in doing good to others to the best of my abilities all the days of my life !

     

    May I always entertain a feeling of friendliness for all living beings in the world;

    May the spring of sympathy in my heart be ever bubbling for those in agony and affliction;

    may I never fell angry with the vile, the vicious and the wrongly-directed;

    May there be such an adjustment of things sealing with them !

     

    May my heart ever overflow with love at the sight of virtuous men;

    May this mind (of mine) rejoice always in serving them to the utmost of its power;

    May I be never ungrateful;

    May jealousy never approach me;

    May my longing be always for assimilating the virtues of others; and

    May the eyes never alight on their faults !

     

    Whether people speak of me well or ill;

    Whether wealth comes to me or departs;

    Whether I live to be hundreds of thousand years old;

    Or I give up the ghost this day;

    Whether any one holds out any kind of fear;

    Or with worldly riches he tempts me;

    In the face of all these possible things may my footsteps swerve not from the path of truth !

     

    With pleasure may the mind be not puffed up;

    Let pain disturb it never;

    May the awesome loneliness of a mountain, forest or river,

    Or a burning place, never cause it a shiver.

    Unmoved, unshakable, firmness may it grow adamantine,

    And display true moral strength when parted from the desired thing, or united with what is undesired !

     

    May happiness be the lot of all;

    May distress come near none;

    Giving up hatred, sin and pride;

    May the world pour forth one continuous eternal beam of delight;

    May Dharma become the main topic of conversation in every household;

    May evil cease to be easily-wrought;

    May increase of wisdom and merit of works,

    May men realize the purpose of human life Moksha !

     

    May distress and suffering no longer exist,

    May it rain in  time;

    May the king also be righteously inclined;

    And impartially administer justice to the subjects;

    May disease, epidemics and famines cease;

    May people live in peace;

    May the exalted Ahimsa dharma prevail;

    And the Gospel of mercy - Ahimsa Parmo Dharma    (not injuring anyone is the highest religion) become the source of good to all !

     

    May there be mutual love in the world;

    May delusion dwell at a distance;

    May no one ever utter unpleasant speech;

    Or words that arte harsh, with his tongue;

    May men, heroes of the time;

    Whole-heartedly work in the country's cause;

    May all understand the Laws of Truth;

    And joyfully sorrow and suffering endure

    Om, Peace, Shanti ! Shanti ! Shanti !

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  22. Corpus Fund to Maulana Azad Education Foundation (MAEF)

     

    The Maulana Azad Education Foundation (MAEF) was established in 1989 as a voluntary, non-political, non-profit making society registered under the Societies Registration Act, 1860.

    Aims & Objectives:

    The main objectives of MAEF are to formulate and implement educational schemes and plans for the benefit of the educationally backward minorities in particular and weaker sections in general, to facilitate establishment of residential schools, especially for girls, in order to provide modern education to them and to promote research and encourage other efforts for the benefit of educationally backward minorities.

    Schemes Details

    The Schemes of the Foundation are mainly of two types, Viz; Grants-in-aid to NGOs for construction and expansion of schools / hostels, technical / vocational training centres with emphasis on girl students and Scholarships to meritorious girl students. The various schemes run by the Foundation are as under:

    • Financial assistance to establish/expand schools/residential schools/colleges;
    • Financial assistance for purchase of laboratory equipment and furniture etc;
    • Financial assistance for setting up/strengthening vocational/technical training centre/institutes;
    • Financial assistance for construction of hostel buildings;
    • Maulana Azad National Scholarships for meritorious girl students;
    • Maulana Abdul Kalam Azad Literacy Awards.
    • Advt. regarding Begum Hazrat Mahal National Scholarship scheme for the Year 2018-19.

    अधिक जानकारी केलिए PDF डाउनलोड करें - molana aazad Advertisement_Scholarship_2018-19.pdf

  23. Hamari Dharohar

    "Hamari Dharohar"- A scheme to Preserve Rich Heritage of Minority Communities of India under the Overall Concept of Indian Culture - Scheme Guidelines and Operational Guidelines (For the years 2017-18 to 2019-20)

     अधिक जानकारी के लिए PDF डाउनलोड करें English - HamariDharohar-Guidelines.pdf

     अधिक जानकारी के लिए PDF डाउनलोड करें हिन्दी - hamari_dharohar-Guidelines hindi.pdf

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