Jump to content
फॉलो करें Whatsapp चैनल : बैल आईकॉन भी दबाएँ ×
JainSamaj.World
Unknown


Lyric: भक्तामर स्तोत्र श्लोक 34
शुम्भत्-प्रभा- वलय-भूरि-विभा-विभोस्ते,
लोक-त्रये-द्युतिमतां द्युति-माक्षिपन्ती।

प्रोद्यद्- दिवाकर-निरन्तर-भूरि -संख्या,
दीप्त्या जयत्यपि निशामपि सोमसौम्याम्॥34॥
×
×
  • Create New...